मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

कबीर के श्लोक --५०

कबीर साधू की संगति रहऊ, जऊ की भूसी खाउ॥
होनहारु सो होइ है, साकत संगि न जाउ॥९९॥

कबीर जी कहते हैं कि भले ही हमारे पास खाने को मात्र रूखा सूखा हो, लेकिन हमे हमेशा अच्छे लोगो की सगंति करनी चाहिए,साधु की सगंति करनी चाहिए। वही इंसान समझदार है जो ऐसे लोगो से दूर रहता है जो प्रभू को भुलाये बैठे हैं।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि उस परमात्मा की प्राप्ती के लिए यह जरूरी नही कि तुम्हारे पास अच्छी धन संपदा हो,तुम अच्छा खाते पीते हो। यदि हमारी संगत अच्छॆ लोगो के साथ है जो उस परमात्मा की कृपा पाने मे लगे हैं तो यही श्रैष्ट है।जो लोग अच्छे बुरे को पहचानने लगे हैं वे कभी भी ऐसे लोगो का संग नही करते जो साकत हैं।


कबीर संगति साध की, दिन दिन दूना हेतु॥
साकत कारी कांबरी, धोऐ होइ न सेतु॥१००॥

कबीर जी आगे कहते हैं कि यदि इस तरह विचार कर हम अच्छॆ लोगों व परमात्मा के भक्तों की सगंत करेगे तो हमारी निकटता दिन दूनी उस परमात्मा के साथ बढ़ती ही जायेगी।वही साकत लोग अर्थात जो उस परमात्मा को भुलाये बैठे हैं ऐसे लोग उस काले कम्बंल के समान है जिसे जितना भी  धो लो वह सफेद नही हो सकता।

कबीर जी हमे समझाना चाहते है कि हमे हमेशा ऐसे लोगों की सगंति मे रहना चाहिए जो उस परमात्मा के ध्यान मे लगे हैं,उस की भक्ति मे लगे हैं। क्योकि परमात्मा से दूर हुए लोगो को कितना भी समझा लो वे समझ नही सकते।अर्थात कबीर जी कहना चाहते हैं कि सगंति का प्रभाव जीवन मे बौत गहरा पड़ता है इस लिए हमेशा बुरे लोगों की सगंति से बचना चाहिए और अच्छे लोगों की सगंति मे रहना चाहिए।

1 टिप्पणियाँ:

Anita ने कहा…

संगति का बहुत असर पड़ता है साधना पर, सत्संगति हमें मुक्त करती है और सांसारिकता हमें बंधती है.

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