गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

कबीर के श्लोक - ६६

कबीर साकत संग न कीजीऐ, दूरहि जाईऐ भागि॥
बासनु कारो परसीऐ, तऊ कछु लागै दागु॥१३१॥

कबीर जी कहते है कि जो लोग परमात्मा को भूले रहते हैं ऐसे लोगो का संग कभी भी नही करना चाहिए।क्योकि जिस प्रकार कोई काले हुए बर्तन को छूने से उस बर्तन की कालापन हमें भी लग जाता है ठीक उसी तरह जो परमात्मा को भुलाये बैठे लोग हैं उन का साथ करने से हम भी उसी तरह के हो सकते हैं।

कबीर जी हमे कहना चाहते हैं कि हमारे जीवन मे संगत का बहुत असर होता है यदि हम किसी बुरे की संगत करेगें तो हमारे भीतर बुराई आने लगेगी। इस लिये ऐसे लोगों से सदा बचना चाहिए।


कबीर रामु न चेतिउ, जरा पहूंचिउ आइ॥
लागी  मंदरि दुआर ते, अब किआ काढिआ जाइ॥१३२॥

कबीर जी कह्ते हैं कि हम सारे जीवन उस परमात्मा को भूले रहते हैं हमारा ध्यान कभी भी उस परमात्मा की ओर नही जाता और हम बूढे हो जाते हैं।जिस प्रकार किसी घर के द्वार पर ही आग लग जाये तो उसमें से बाहर निकलना कठिन हो जाता है ठीक उसी तरह जब हम जीवन भर दूसरी बातों मे लगे रहते हैं तो आखिर में वे बातें हमे घेर लेती है जिस कारण हम बुढापे में भी उस परमात्मा को पाने मे असमर्थ ही रहते हैं।

कबीर जी कहना चाहते हैं समय रहते ही उस परमात्मा के साथ एकाकार को प्राप्त कर लेना चाहिए। नही तो हम जो जीवन भर करते रहते हैं ,वही संस्कार हमे अंत मे पकड़ लेते हैं । उस समय उन से छुट्कारा पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।

4 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला ने कहा…

हमेशा की तरह सुन्दर व्याख्या। धन्यवाद।

Anita ने कहा…

सुंदर संदेश !

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

सुंदर संदेश


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