गुरुवार, 21 जुलाई 2011

कबीर के श्लोक - ७८

कबीर जहा गिआन तह धरमु है,जहा झूठ तह पापु॥
जहा लोभु तह कालु है जहा खिमा तह आपि॥१५५॥


कबीर जी कहते हैं कि जहाँ समझ होती है वही धरम हो सकता है और जहाँ झूठ होता है वहाँ पाप होता है। लोभ हमेशा नाश ही लाता है ,लेकिन जिसके भीतर क्षमा होती है वही उस परमात्मा का निवास होता है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि जिस के भीतर होश होती है,समझ होती है वही धर्म हो सकता है।बेहोश आदमी कभी भी धार्मिक नही हो सकता।इसी लिये कबीर जी कह रहे हैं कि जहाँ झूठ होता है अर्थात बेहोशी होती है अज्ञान होता है वही पाप होता है।क्योकि बेहोशी मे किया गया कार्य हमेशा झूठा होता है,ऐसे कर्म को ही इंगित करने के लिये पाप शब्द का प्रयोग किया है।आगे कबीर जी कहना चाहते हैं कि लालच के कारण ही आदमी गलत रास्ते पर जाता है जो आदमी को पतन की ओर ले जाता है।जो नाश का कारण बनता है। लेकिन हमारे भीतर यदि क्षमाशीलता है तो हमारे भीतर करूणा भी विराजित रहती है।ऐसे ह्र्दय में ही परमात्मा का वास होता है।

कबीर माइआ तजी त किआ भईआ,
जऊ मानु तजिआ नही जाइ॥
मान मुनी मुनीवर गले,मानु सभै कऊ खाइ॥१५६॥


कबीर जी कहते है कि कुछ लोग धन दौलत,घरबार को छोड़ कर यह सोच लेते हैं कि वे इस तरह करने से परमात्मा की निकटता पा जायेगें। लेकिन वास्तव मे जो छोड़ने वाली चीज है वह है अपने भीतर का अंहकार , उसे नहो छॊड़ पाते। इस अंहकार ने तो  कितने मुनी साधको को ग्रस लिआ है।

कबीर जी कहना चाहते है कि संसारिक सुखो का त्याग करने से कुछ लाभ नही होता। यदि इन संसारिक सुखों को त्याग कर उल्टा अंहकार से भर जायें। मन मे हमेशा ये बात रहे कि देखो ! हमने परमात्मा के लिये कितना त्याग करा है। इस तरह का भाव जीव को परमात्मा से दूर ले जाता है।इसी तरह मुनी लोग व साधक जो इस अंहकार भाव से भरे होते हैं कि देखो ! हमने सभी संसारिक सुखों का त्याग किया है, हमने कितनी कठोर साधना उस परमात्मा के लिये की है।इस तरह के भाव यदि मन में रहता है तो वह अंहकार को जन्म देता है और अंहकार के कारण कभी भी उस परमात्मा को नही पाया जा सकता। यह अंहकार सभी के पतन का कारण बन जाता है।

3 टिप्पणियाँ:

Anita ने कहा…

कबीर जी ठीक कहते हैं जहाँ होश है वहीं धर्म है जहाँ अहंकार नहीं है वहीं परमात्मा है !

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर बात कही कबीर जी ने मगर हम लोग कहाँ ऐसी बातों पर विचार करते हैं\ करुणा क्षमाशीलता तो समाज से लुप्त होती जा रही है। धन्यव्क़ाद ।

राम जी परमार ने कहा…

kabir ji ne bahut sunder baat kahi he ...

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