कबीर दावै दाझनु हेतु है, निरदावै रहै निसंक॥
जो जनु निरदावै रहै,सो गनै इंद्र सो रंक॥१६९॥
कबीर जी कहते है कि जब हम किसी वस्तु या चीज पर अपना अधिकार समझने लगते हैं तो हमारे भीतर एक प्रकार से उसे अपने अधिकार मे रखने की भावना जन्म ले लेती है। जो हमारी खीज व दुख का कारण बन सकती है।लेकिन जो किसी पर अपने अधिकार को नही जताता उस के मन में कभी भी किसी प्रकार की शंका पैदा नही होती।ऐसा व्यक्ति इन्द्र के समान होता है जो सभी संम्पदा का मालिक बना रहता है।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि किसी वस्तु पर आसक्ति पैदा होने पर हम उस वस्तु के गुलाम हो जाते है जिस कारण हमारी मलकियत खो जाती है ।अत: हमे संसार मे ऐसे रहना चाहिए कि हम मालिक बने रहे ऐसा ना हो कि वस्तु के प्रति मोह या आसक्ति के कारण वह हमारी मालिक बन जाए।कबीर जी हमे संसार मे रहते हुए इन प्रलोभनों से बचने का उपाय बता रहे हैं।
कबीर पालि समुहा सर्वरु भरा, पी न सकै कोई नीरु॥
भाग बडे तै पाइउ, तू भरि भरि पीऊ कबीर॥१७०॥
कबीर जी आगे कहते है कि इस संसार मे एक ओर जहाँ संसारिक प्रलोभन दिखाई देते हैं वही दूसरी ओर एक ऐसा सरोवर भी सदा से मौजूद है जो पानी से पूरी तरह भरा हुआ है। जिस के कारण कोई अच्छे भाग्य होने के कारण ही उस पानी तक पहुँच पाता है।यदि तू उस तक पहुँच गया है तो अब उस पानी को प्यालों मे भर भर कर पी और आनंदित हो।
कबीर जी कहना चाहते है कि यदि जीव संसारिक मोह माया से बच जाता है तो वह परमात्मा के सरोवर के करीब पहुँच जाता है जहा पर भक्ति रूपी जल लबालब भरा हुआ है। फिर वह उस भक्ति रूपी जल का स्वाद जी भर कर ले सकता है।
जो जनु निरदावै रहै,सो गनै इंद्र सो रंक॥१६९॥
कबीर जी कहते है कि जब हम किसी वस्तु या चीज पर अपना अधिकार समझने लगते हैं तो हमारे भीतर एक प्रकार से उसे अपने अधिकार मे रखने की भावना जन्म ले लेती है। जो हमारी खीज व दुख का कारण बन सकती है।लेकिन जो किसी पर अपने अधिकार को नही जताता उस के मन में कभी भी किसी प्रकार की शंका पैदा नही होती।ऐसा व्यक्ति इन्द्र के समान होता है जो सभी संम्पदा का मालिक बना रहता है।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि किसी वस्तु पर आसक्ति पैदा होने पर हम उस वस्तु के गुलाम हो जाते है जिस कारण हमारी मलकियत खो जाती है ।अत: हमे संसार मे ऐसे रहना चाहिए कि हम मालिक बने रहे ऐसा ना हो कि वस्तु के प्रति मोह या आसक्ति के कारण वह हमारी मालिक बन जाए।कबीर जी हमे संसार मे रहते हुए इन प्रलोभनों से बचने का उपाय बता रहे हैं।
कबीर पालि समुहा सर्वरु भरा, पी न सकै कोई नीरु॥
भाग बडे तै पाइउ, तू भरि भरि पीऊ कबीर॥१७०॥
कबीर जी आगे कहते है कि इस संसार मे एक ओर जहाँ संसारिक प्रलोभन दिखाई देते हैं वही दूसरी ओर एक ऐसा सरोवर भी सदा से मौजूद है जो पानी से पूरी तरह भरा हुआ है। जिस के कारण कोई अच्छे भाग्य होने के कारण ही उस पानी तक पहुँच पाता है।यदि तू उस तक पहुँच गया है तो अब उस पानी को प्यालों मे भर भर कर पी और आनंदित हो।
कबीर जी कहना चाहते है कि यदि जीव संसारिक मोह माया से बच जाता है तो वह परमात्मा के सरोवर के करीब पहुँच जाता है जहा पर भक्ति रूपी जल लबालब भरा हुआ है। फिर वह उस भक्ति रूपी जल का स्वाद जी भर कर ले सकता है।
4 टिप्पणियाँ:
कबीर के श्लोक नहीं हैं, दोहे हैं, कृपया इसे ठीक कर लीजियेगा।
bhut acha.
bahut hi ache dohe aur unhe behad ache tarah se samjhaya hai aapne.
Sadhuwaad
@डा व्योम जी सिख धर्मग्रंथ मे श्लोक ही लिखा है अत: श्लोक लिखा है। धन्यवाद।
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