गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

कबीर के श्लोक - ८८

कबीर मनु सीतलु भैईआ पाईआ ब्र्हम गिआनु॥
जिनि जुआला जगु जारिआ, सु जन के उदक समानि॥१७५॥

कबीर जी कहते हैं कि उस परमात्मा के ध्यान मे लगे जीव का मन बिल्कुल शांत हो जाता है और उसे् पारबह्म परमात्मा की वास्तविकता का ज्ञान हो जाता है। इस लिए जो माया पूरे जगत को भरमा रही है. जिस की आग मोह लोभ रूपी आग मे हरएक जीव जल रहा है यह आग परमात्मा की भक्ति करने वाले को पानी की तरह महसूस होती है अर्थात उसे जला नही पाती।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि परमात्मा की कृपा के कारण जीव इस माया से संसारिक कार- विहार करते हुए भी बचा रहता है।

कबीर साची सिरजनहार की, जानै नाही कोइ॥
 कै जानै आपन धनी, कै दासु दीवानी होइ॥१७६॥॥

कबीर जी कहते हैं कि ये बात हरेक कोई नही जानता कि यह माया जो संसार को भ्रमित करती है इस को बनाने वाला भी वही परमात्मा है।इस भेद को परमात्मा जानता है या फिर उस के भक्त जानते हैं जो सदा उसके ध्यान मे लगे रहते हैं। वे भगत इस भेद को जानते हैं कि माया को बनाने वाला ही हमे माया से बचा सकता है। इस लिए परमात्मा ही इस माया रूपी आग से हमे बचा सकता है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि यदि संसारिक माया से बचना है तो इस के बनाने वाले से ही संम्पर्क साध कर ही इस का भेद जाना जा सकता है। इस लिए उस परमात्मा की शरण में जा अकर हम इस से मुक्ति पा सकते है।





2 टिप्पणियाँ:

Anita ने कहा…

माया और माया पति एक ही हैं... उसकी ही लीला है यह...और वह भी इसलिए कि हम आनंद को उपलब्ध हों... सुंदर पोस्ट !

Smart Indian ने कहा…

बहुत सुन्दर!
मित्रों, परिजनों के साथ आपको भी पर्व की मंगलकामनायें!
तमसो मा ज्योतिर्गमय!

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