सोमवार, 9 अप्रैल 2012

कबीर के श्लोक - १०१


कबीर लेखा देना सुहेला जऊ दिल सूची होइ॥
उसु साचे दीबान महि पला न पकरै कोइ॥२०१॥

कबीर जी कहते हैं कि परमात्मा जीव की नही तेरे दिल के पाकीजगी की कुरबानी माँगता है।यदि जीव का दिल पवित्र व सच्चा है तो परमात्मा के दरबार में हिसाब-किताब देना आसान हो जायेगा। तब उस सच्चे दरबार में किसी प्रकार की रोक-टोक नही रहेगी।।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि जीवों के कुरबानी देने से परमात्मा खुश नही होता । यदि तुम्हारा ह्र्दय पवित्र है, सच्चा है तो उस परमात्मा के दरबार मे बिना रोक-टोक स्थान मिलता है।हम तभी निश्चिंत हो कर उस परमात्मा के सामने टिक सकते है जब हमारे कर्म अच्छे व नेक हो तभी हम आसानी से अपना हिसाब -किताब उस के सामने रख सकेगें।

कबीर धरती अरू आकास महि दुइ तूं बरी अबध॥
खट दरसन संसे परे अरु चऊरासीह सिध॥२०२॥

कबीर जी कहते हैं कि धरती और आकास सभी जगह जीव के लिये द्वैत की भावना ही सबसे बड़ी रूकावट है। इस द्वैत के कारण ही उस परमात्मा की प्राप्ती मे लगे साधक और चौरासी सिध परमात्मा तक ना पहुँच पाने के कारण शंका मे पड़े हुए हैं। क्योकि वे अपनी तरफ से सभी उपाय व यत्न ईश्वर को पाने के लिये करते हैं लेकिन लक्ष्य तक नही पहुँच पाते।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि जब साधक किसी जीव की बलि देता है या फिर परमात्मा की प्राप्ती के लिये अपनी ओर से कोई उपाय करता है तो साधाक व सिध के मन में यह भाव आ जाता है कि मै कुछ कर रहा हूँ। इस ’मैं कुछ करता हूँ’ के भाव  के कारण साधक द्वैत अर्थात दो की भावना से ग्रस्त हो जाता है। इस लिये ईश्वर प्राप्ती मे बाधा उत्पन्न हो जाती है। यहाँ कबीर जी हमे बताना चाहते हैं कि हम किस कारण से परमात्मा तक पहुँचने मे समर्थ नही हो पाते।


1 टिप्पणियाँ:

शिवा ने कहा…

कबीर के दोहों की जानकारी के लिए धन्यवाद ..

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