गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

कबीर के श्लोक - १२१

ढूंढ्त डोलहि अंध गति , अरु चीनत नाही संत॥
कहि नामा किऊ पाईऐ , खिनु भगतहु भगवंतु॥२४१॥


कबीर जी कहते हैं कि नामदेव जी कहते हैं -जीव खोज खोज कर परेशान हो जाता है,लेकिन संत पुरुष पहचान में नही आता।भगवान की भक्ति करने वाला जीव फिर कैसे पहचाने भगवान के भक्त को ।

कबीर जी नामदेव जी के विचारों को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि भक्ति करने वालों की संगति के बिना परमात्मा नही मिल सकता।जो जीव प्रभु की भक्ति तो करते हैं लेकिन भगत जनों को पहचान नही पाते,वे भटकते रह जाते हैं।अर्थात वे कहना चाहते हैं कि परमात्मा का भक्त परमात्मा के भक्त को पहचान लेता है।

हरि से हीरा छाडि कै , करहि आन की आस॥
ते नर दोजक जाहिगे , सति भाखै रविदास॥२४२॥


कबीर जी रविदास जी के विचारों को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि परमात्मा को छोड़ कर किसी दूसरे से सुख पाने की आशा करनी ठीक ऐसा ही जैसे नरक में सुख पाने की आशा करना।ऐसी आशा करने वाले सदा दुखी ही रहते हैं।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि किसी भी दुनियावी पदार्थ से सुख प्राप्त नही हो सकता।यदि किसी को सुख पानें की इच्छा है तो उसे उस परमात्मा की शरण मे ही जाना पड़ेगा।यदि जीव अन्य जगह सुख पाने की चाह में जायेगा तो अंतत: उसे दुख ही प्राप्त होगा।कबीर जी अपने इसी अनुभव को रविदास जी के शब्दो की मदद से हमे समझाना चाहते हैं।