शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008

गुरुबाणी विचार-२



तरनापो एयो ही गयो लिओ जरा तन जीत ।

कह नानक भज रे मना आउद जात है बीत॥३॥


बिरद भयो सूझै नही काल पहूँचयो आन ।

कहो नानक नर बावँरें क्यों ना भजे भगवान॥४॥


धन दारा संपत्ति सगल जिन अपनी करि मानि ।

इन में कछु संगी नहीं नानक साची जानि॥५॥



जब हमारे पास ताकत होती है कुछ कर गुजरनें की उस समय हमारा ध्यान दुनियावी राग रंग के प्रति आसक्त रहता है। हमें इस बात का कभी ख्याल ही नही आता कि हमारा भला किस में छुपा हुआ है। जवानी आनें पर हम कही ओर भटकते रहते हैं। क्यूँ कि उस समय हमारा जोश हमारे होश पर हावी रहता है। हमें इस बात की चिन्ता ज्यादा रहती है कि हम कैसे दुनियावी भोगों को अधिकाधिक भोगें। इसी सोच और भावना में बहनें के कारण हम अपने अमुल्य समय को व्यर्थ गवा देते हैं। हमे पता ही नही चलता कि कब बुढापा आ जाता है।



बुढापा आनें पर हमारी सोचनें समझनें की शक्ति वैसे ही कमजोर होती जाती है,ऐसे समय में प्रभू के प्रति हमारा प्रेम बहुत कमजोर पड़ जाता है क्योंकि हम जो जीवन भर करते रहे हैं वह हमें उलझाए रखता है और हम उस से उबरनें में सदा असमर्थ रहते हैं। वही दूसरी और बुढापे में हमें मृत्यू भय भी बहुत सतानें लगता है ऐसे में हमारी की गई प्रार्थना भी मात्र याचना मात्र ही रह जाती है,स्वार्थ से परिपूर्ण होती है। इस लिए उस समय परमानंद को पाना हमारे लिए बहुत कठिन हो जाता है।उस समय हम पछताते हैं कि समय रहते हमनें प्रभू को क्यों नही भजा। अर्थात उस समय हमनें उस का ध्यान क्यों नही किया?



उस समय हमें बस अपनें जीवन भर किए प्रयत्नों से पाई सम्पदा के प्रति मोह पकड़े रहता है। हमारी सोच उसी सम्पदा के इर्द-गिर्द ही भटकती रहती है। हम उसे अपनी जान कर खुश होते रहते हैं। अपनें परिवार को देख कर अपनी पत्नी को देख कर,यह सब मेरा है और यह मेरी सहायता करता रहेगा, लेकिन गुरु जी कहते हैं कि इस में से कोई भी तेरा साथ नही देगा। यह बात सदा सच है ,इस को तू जान ले।

1 टिप्पणियाँ:

राज भाटिय़ा ने कहा…

परम्जीत जी,गुरुबाणी के लिये बहुत बहुत धन्य्वाद,अगर आप को कोई लिन्क पता हो जहा से गुरुबाणी mp3 पर download कर सके तो जरुर बताना,आप का धन्य्वाद फ़िर से

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