मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

फरिद के श्लोक - २९

फरीदा तनु सुका, पिंजरु थीआ, तलीआं खूंढहि काग॥
अजै सु रबु न बाहुडिउ, देखु बंदे के भाग॥९०॥

कागा करंग डडोलिआ,सगला खाइआ मासु॥
ऎ दुइ नैना मति छुहऊ,पिर देखन की आस॥९१॥

कागा चूंडि न पिजंरा, बसै त उडरि जाहि॥
जित पिजंरै मेरा सहु वसै, मास न तिदू खाहि॥९२॥

फरीद जी कहते हैं कि यह शरीर अब बहुत कमजोर हो चुका है,यह अब इतना कमजोर हो चुका है कि पिजंर मात्र ही रह चुका है। लेकिन इतना सब होने पर भी यह जो काक रूपी लोभ,वासनाएं हैं यह अब भी सता रही हैं।रह रह कर यह हम पर हावी हो जाती हैं।जरा देखो तो सही, इन विकारो में पड़े इन्सान की किस्मत, यह इन विकारों के कारण अपना सर्वस खोता जा रहा है और परमात्मा की कृपा इस पर नही हो पा रही। अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि हम विषय विकारों में खोये हुए इन्सान अपनी शक्ति को गँवाते जा रहे हैं।विषय विकारों मे रमे रहने के कारण हम प्रभु कृपा से वंचित होते जा रहे,अब यही हमारी किस्मत बनती जा रही है अर्थात संसारी प्रलोभनों के कारण हम प्रभु को भूलते जा रहे हैं।

फरीद जी आगे कहते हैं कि इस काक ने मेरे पिजंर को,शरीर व मन को पूरी तरह से छान मारा है।यह शरीर का सारा मास खा गया है।लेकिन फिर भी फरीद जी कहते हैं कि काक तुम मेरे इन दो नैनों को मत खाना अर्थात इन्हें विकार ग्रस्त मत करना।क्युँकि इन दो नैनों मे उस परमात्मा को देखने की आस बनी रहे।अर्थात फरीद जी कहना चाहते है कि विषय -विकार रूपी इस काक ने हम को विषय विकारों से भर दिया है,ऐसी कोई भी राह नही छोड़ी कि हमारा ध्यान उस परमात्मा की ओर जा पाए। लेकिन फिर भी यह जो हमारी आँखें हैं, विषय विकारों की चपेट में पूरी तरह नही आई हैं ।इस लिए हे काक तू इन दो आँखॊ को मत खाना अर्थात विषय विकारो से ग्रस्त मत करना,ताकी इन मे उस प्रभु को देखने की आस बनी रहे।

आगे फरीद जी कहते हैं कि विषय विकार रूपी काक अब तू मेरे शरीर को छोड़ दे,अब तू यहाँ से उड़ जा।अब तुझे यहाँ से उड़ना ही होगा ।क्युँकि अब हमने जान लिआ है कि इस शरीर में मेरा परमात्मा वास करता है।अब यह काक मेरे शरीर का मास नही खा पाएगा। अर्थात फरीद जी कहना चाहते है कि जब तक हमे यह ज्ञान नही होता कि परमात्मा हमारे भीतर रहता है ,तभी तक हम विषय विकार रूपी काक के भोजन बनते रहते हैं अर्थात विषय विकारों मे डूबे रहते हैं।लेकिन जब हम उस परमात्मा को पहचान जाते हैं,उस परमात्मा की भक्ति करने लगते हैं, तो यह विषय विकार अपने आप ही हमें छोड़ कर चले जाते हैं।

3 टिप्पणियाँ:

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

सुविचार !! आभार !!

admin ने कहा…

फरीद जी के प्रवचनों को सुनाने के लिए आभार।

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मॉं की गरिमा का सवाल है
प्रकाश का रहस्‍य खोजने वाला वैज्ञानिक

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बाबा फरीद का श्लोकों के माध्यम से ज्ञान गंगा बहाने के लिए बधाई।

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