कबीर ऐसा एक आधु,जो जीवत मिरतकु होइ॥
निरभै होइ के गुन रवै,जत पेखऊ तत सोइ॥५॥
कबीर जी कहते है कि इस संसार मे कोई बिरला ही होता है जो अपने जीवन को इस तरह जीए जैसे कोई जीवत व्यक्ति किसी मरे हुए के समान इस संसार से संबध रखता है।निरभय हो कर सुख और दुख से ऊपर उठ जाए।अर्थात सुख और दुख को एक समान महसूस करे और उस परम पिता परमात्मा को ही हर जगह देखे।
कबीर जी कहना चाहते है कि दुनिया में कोई विरला व्यक्ति ही होता है परमात्मा की रजा मे रहता है और उस परमात्मा द्वारा दिए गए सुख दुख को समान भाव से स्वीकार करता है।ऐसा व्यक्ति विरला ही होता है जो इस सुख दूख से बेपरवाह होकर उस परमात्मा से बिना कोई शिकायत किए उस का यशोगान,उस की भक्ति करता रहता है।ऐसा इन्सान वही हो सकता है जो हर जगह,हरेक में उस परमात्मा को देखता है। अर्थात कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमे उस परमात्मा की भक्ति इसी तरह करनी चाहिए।
कबीर जा दिन हऊ मुआ,पाछै भईआ अनंदु॥
मोहि मिलिउ प्रभु आपना,संगी भजहि गोबिंदु॥६॥
इस श्लोक मे कबीर जी कहते है जिस दिन हमारे भीतर से अंहकार नष्ट हो जाता है,उसी दिन से हमे आनंद की प्राप्ती होनी आरम्भ हो जाता है और उस परमात्मा की ओर हमारा ध्यान स्वत: ही जाने लगता है। हमे उस परमात्मा की मौजूदगी का एहसास होने लगता है और हमारा मन उस मे स्वत: ही रमने लगता है।
इस श्लोक मे कबीर जी पहले कहे गए श्लोक पर अमल करने के बाद जो होता है उस का वर्णन कर रहे हैं। कि जब अंहकार की निवृति हो जाती है तो ही हमे आनंद की प्राप्ती होती है। वास्तव मे यह अंहकार ही हमे उस आनंद को पाने में बाधक होता है।लेकिन जिस दिन यह अंहकार मर जाता है अर्थात हम इसे छोड़ देते हैं उसी समय यह आनंद हमारे भीतर नजर आने लगता है ,हमे महसूस होने लगता है। वास्तव में यह आनंद तो हरेक के भीतर पहले से ही मौजूद होता है लेकिन हमारे अंहकार के कारण हमे नजर नही आता।इस प्रकार अंहकार के मरते ही वह परमानंद स्वरूप परमात्मा से हमारा मिलन हो जाता है।फिर हमे परमात्मा का ध्यान करने के लिए किसी प्रकार की चेष्टा नही करनी पड़ती। वह परमात्मा स्वत: ही हमे अपने साथ मौजूद नजर आने लगता है।
निरभै होइ के गुन रवै,जत पेखऊ तत सोइ॥५॥
कबीर जी कहते है कि इस संसार मे कोई बिरला ही होता है जो अपने जीवन को इस तरह जीए जैसे कोई जीवत व्यक्ति किसी मरे हुए के समान इस संसार से संबध रखता है।निरभय हो कर सुख और दुख से ऊपर उठ जाए।अर्थात सुख और दुख को एक समान महसूस करे और उस परम पिता परमात्मा को ही हर जगह देखे।
कबीर जी कहना चाहते है कि दुनिया में कोई विरला व्यक्ति ही होता है परमात्मा की रजा मे रहता है और उस परमात्मा द्वारा दिए गए सुख दुख को समान भाव से स्वीकार करता है।ऐसा व्यक्ति विरला ही होता है जो इस सुख दूख से बेपरवाह होकर उस परमात्मा से बिना कोई शिकायत किए उस का यशोगान,उस की भक्ति करता रहता है।ऐसा इन्सान वही हो सकता है जो हर जगह,हरेक में उस परमात्मा को देखता है। अर्थात कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमे उस परमात्मा की भक्ति इसी तरह करनी चाहिए।
कबीर जा दिन हऊ मुआ,पाछै भईआ अनंदु॥
मोहि मिलिउ प्रभु आपना,संगी भजहि गोबिंदु॥६॥
इस श्लोक मे कबीर जी कहते है जिस दिन हमारे भीतर से अंहकार नष्ट हो जाता है,उसी दिन से हमे आनंद की प्राप्ती होनी आरम्भ हो जाता है और उस परमात्मा की ओर हमारा ध्यान स्वत: ही जाने लगता है। हमे उस परमात्मा की मौजूदगी का एहसास होने लगता है और हमारा मन उस मे स्वत: ही रमने लगता है।
इस श्लोक मे कबीर जी पहले कहे गए श्लोक पर अमल करने के बाद जो होता है उस का वर्णन कर रहे हैं। कि जब अंहकार की निवृति हो जाती है तो ही हमे आनंद की प्राप्ती होती है। वास्तव मे यह अंहकार ही हमे उस आनंद को पाने में बाधक होता है।लेकिन जिस दिन यह अंहकार मर जाता है अर्थात हम इसे छोड़ देते हैं उसी समय यह आनंद हमारे भीतर नजर आने लगता है ,हमे महसूस होने लगता है। वास्तव में यह आनंद तो हरेक के भीतर पहले से ही मौजूद होता है लेकिन हमारे अंहकार के कारण हमे नजर नही आता।इस प्रकार अंहकार के मरते ही वह परमानंद स्वरूप परमात्मा से हमारा मिलन हो जाता है।फिर हमे परमात्मा का ध्यान करने के लिए किसी प्रकार की चेष्टा नही करनी पड़ती। वह परमात्मा स्वत: ही हमे अपने साथ मौजूद नजर आने लगता है।
7 टिप्पणियाँ:
बेहतरीन व्याख्या!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
बहुत सुन्दर और सार्थक पोस्ट धन्यवाद
कबीर ने आम व्यक्ति भाषा में भगवान् को आम व्यक्ति तक पहुँचाया था.
बहुत प्रेरणादायक पंक्तियों के लिए आभार!
नव वर्ष के लिए शुभकामनाएं !
प्रकाश पाखी
नव वर्ष की बहुत शुभकामनायें ...!!
कबीर की पंक्तियों की सुन्दर व्याख्या
बहुत बहुत आभार
एवं
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
आपका ये ब्लॉग बहुत ज्ञानवर्धक और अच्छा लगा । कबीर के ये दोहे भी बडे सुंदर हैं ।
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