कबीर कसऊटी राम की, झूठा टिकै न कोइ॥
राम कसऊटी सो सहै,जो मरि जीवा होइ॥३३॥
कबीर जी कह्ते है कि उस परमात्मा के समक्ष झूठा कभी नही टिक पाता।क्योकि उस परमात्मा की कसौटी ही ऐसी है कि जब तक मनुष्य अपने अंहकार को नही मार लेता तब तक वह उस तक नही पहुँच पाता।अर्थात राम की कसौटी को वही सहन कर सकता है जो जीते जी मृतक के समान जगत मे व्यवाहर करता है।
कबीर जी कहना चाहते है कि झूठा आदमी लाख चाहे वह अपने झूठ के कारण कभी सफल नही हो सकता।क्योकि सत्य को झूठ के सहारे पाया ही नही जा सकता।सत्य को पाने के लिए सत्य ही मदद कर सकता है और परमात्मा तो परम सत्य स्वरूपा है।इस लिए उसे कोई झूठ के सहारे कैसे पा सकता है ? आगे कबीर जी समझाते है कि राम की इस कसौटी वही स्वीकारता है जो दुनियावी मोह माया के प्रति उदासीन हो चुका है, मर चुका है और उस परमात्मा के प्रेम के प्रति जाग्रित हो चुका है। अर्थात जीने लगता है। यही एक मात्र कसौटी है जो यह दर्शाती है कि तुम राम के प्रति समर्पित हो चुके हो या नही।
कबीर ऊजल पहिरहि कापरे, पान सुपारी खाहि॥
ऐकस हरि के नाम बिनु ,बाधे जम पुरि जांहि॥३४॥
कबीर जी कहते है कि दुनियावी आदमी साफ सुथरे कपड़े पहन कर और पान सुपारी खा कर आनंदित दिखने की कोशिश करते रहते हैं। लेकिन परमात्मा के नाम के बिना मृत्यु के भय की फाँस मे बधे रहते हैं और अंतत: मृत्युलोक मे चले जाते हैं।
कबीर जी यहाँ झूठे लोगो के व्यवाहर के बारे मे समझाना चाहते हैं कि ऐसे लोग उजले कपड़े अर्थात ऐसे कपड़े पहने रहते है जिस से यह आभास होता है कि ये बहुत धर्म-कर्म को मानने वाले है। वे लोग इस तरह का व्यवाहर करते है कि जैसे अब बहुत आनंदित अवस्था मे रह रहे हैं यहाँ कबीर जी पान सुपारी खाने के भाव को इसी आशय से कह रहे हैं। लेकिन कबीर जी आगे कहते है कि उस परमात्मा के नाम के बिना कोई जितना मर्जी दिखावा करे लेकिन इनके भीतर मृत्यु का भय हमेशा इन्हें सताता रहता है।
राम कसऊटी सो सहै,जो मरि जीवा होइ॥३३॥
कबीर जी कह्ते है कि उस परमात्मा के समक्ष झूठा कभी नही टिक पाता।क्योकि उस परमात्मा की कसौटी ही ऐसी है कि जब तक मनुष्य अपने अंहकार को नही मार लेता तब तक वह उस तक नही पहुँच पाता।अर्थात राम की कसौटी को वही सहन कर सकता है जो जीते जी मृतक के समान जगत मे व्यवाहर करता है।
कबीर जी कहना चाहते है कि झूठा आदमी लाख चाहे वह अपने झूठ के कारण कभी सफल नही हो सकता।क्योकि सत्य को झूठ के सहारे पाया ही नही जा सकता।सत्य को पाने के लिए सत्य ही मदद कर सकता है और परमात्मा तो परम सत्य स्वरूपा है।इस लिए उसे कोई झूठ के सहारे कैसे पा सकता है ? आगे कबीर जी समझाते है कि राम की इस कसौटी वही स्वीकारता है जो दुनियावी मोह माया के प्रति उदासीन हो चुका है, मर चुका है और उस परमात्मा के प्रेम के प्रति जाग्रित हो चुका है। अर्थात जीने लगता है। यही एक मात्र कसौटी है जो यह दर्शाती है कि तुम राम के प्रति समर्पित हो चुके हो या नही।
कबीर ऊजल पहिरहि कापरे, पान सुपारी खाहि॥
ऐकस हरि के नाम बिनु ,बाधे जम पुरि जांहि॥३४॥
कबीर जी कहते है कि दुनियावी आदमी साफ सुथरे कपड़े पहन कर और पान सुपारी खा कर आनंदित दिखने की कोशिश करते रहते हैं। लेकिन परमात्मा के नाम के बिना मृत्यु के भय की फाँस मे बधे रहते हैं और अंतत: मृत्युलोक मे चले जाते हैं।
कबीर जी यहाँ झूठे लोगो के व्यवाहर के बारे मे समझाना चाहते हैं कि ऐसे लोग उजले कपड़े अर्थात ऐसे कपड़े पहने रहते है जिस से यह आभास होता है कि ये बहुत धर्म-कर्म को मानने वाले है। वे लोग इस तरह का व्यवाहर करते है कि जैसे अब बहुत आनंदित अवस्था मे रह रहे हैं यहाँ कबीर जी पान सुपारी खाने के भाव को इसी आशय से कह रहे हैं। लेकिन कबीर जी आगे कहते है कि उस परमात्मा के नाम के बिना कोई जितना मर्जी दिखावा करे लेकिन इनके भीतर मृत्यु का भय हमेशा इन्हें सताता रहता है।
2 टिप्पणियाँ:
बढ़िया..आभार परमजीत भाई!!
बढिया...धन्यवाद
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