मंगलवार, 14 सितंबर 2010

कबीर के श्लोक -३७

कबीर गागरि जल भरी, आजु कालि जैहै फूटि॥
गुरु जु न चेतहि आपनो, अध माझि लीजहिगे लूटि॥७३॥

कबीर जी कहते हैं कि यह जो हमारा जीवन है वह एक पानी से भरी गागर के समान है जिसने अज नही तो कल फूट ही जाना है। इसलिए हमे अपने गुरु को सदा याद रखना चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि हम जिस काम के लिए आए है वह बीच में ही छूट जाए और कोई हमे लूट ले।

कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि यह जीवन कब समाप्त हो जाए कोई नही जानता।इस लिए इस जीवन का सदुपयोग कर लेना चाहिए। इस के लिए हमे अपने गुरु को सदा याद रखना चाहिए अर्थात उन की कही बातो पर, उपदेशो पर, उन की सलाह पर, चलना चाहिए। कहीं ऐसा ना हो की कामादिक विषय विकार, दुनिया का प्रलोभन, हमे अपने जाल मे फँसा लें और हम इसी मे उलझ कर रह जाएं। हमारे सारे जीवन को ये विषय विकार लूट लें और हम जिस काम के लिए आए हैं वह बिना किए ही रह जाए।


कबीर कूकरु राम को, मुतीआ मेरो नाऊ॥
गले हमारे जेवरी, जह खिंचै तह जाऊ॥७४॥

कबीर जी कहते है कि मैं राम का कुत्ता हुँ और मेरा  नाम मोती है। मेरे गले मे मेरे मालिक ने रस्सी डाल रखी है। इस लिए वह जहाँ चाहता है वहीं मुझे खीच कर ले जाता हैं।

कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि कुत्ते दो तरह के होते हैं एक वे जिनका कोई मालिक होता है और दूसरा वे जो आवारा किस्म के होते हैं, जिन का कोई मालिक नही होता। बिना मालिक के कुत्ते को ना तो कोई नाम मिलता है और ना ही कोई आसरा। इस लिए उसका सारा जीवन इधर-उधर की ठोकरें खाते हुए ही नष्ट हो जाता है। अर्थात जो उस परमात्मा का आसरा नही लेते, उनका जीवन आवारा कुत्तो की भाँति व्यर्थ ही जाता है।

यहाँ कबीर जी अपने को राम का कुत्ता बताते हुए हमे समझा रहे हैं कि मेरे मालिक ने प्यार से मेरा नाम मोती रख दिया है, इसी नाम से अब मुझे सब जानने लगे हैं। उस मालिक ने मेरे गले मे रस्सी बाँधी हुई है ताकि मैं कहीं भटक ना जाऊँ अर्थात परमात्मा ने ऐसी व्यवस्था कर दी है की मै सदा उस की रजा मे रहूँ, उस की मर्जी अनुसार चलूँ। अब यदि कभी मैं किसी प्रलोंभन के कारण या अपनी नासमझी के कारण कहीं जाने की सोचता हूँ तो मेरा मालिक अर्थात परमात्मा रस्सी रूपी अपनी कृपा के कारण मुझे नियंत्रण कर लेता हैं। इस लिए अब मैं उसी की मर्जी अनुसार अपना जीवन गुजार रहा हूँ। अर्थात कबीर जी समझाना चाहते हैं कि हमे उस परमात्मा के आसरे ही, उसकी रजा मे, उसकी मर्जी में, रहते हुए अपना जीवन गुजारना चाहिए।

2 टिप्पणियाँ:

Anita ने कहा…

आपका ब्लॉग पहली बार देखा, बधाई ! कबीर मुझे भी भाते हैं.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

कबीर वाणी का जो आप सरल शब्दो मे भावार्थ सम्झाते है वह प्रंशसनीय है

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