गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

कबीर के श्लोक -४१

कबीर सात समुंदहि मसु करऊ, कलम करऊ बनराइ॥
बसुधा कागदु जऊ करऊ, हरि जसु लिखनु न जाइ॥८१॥


कबीर जी कहते है यदि सात समुद्रों की स्याही बना ली जाए और सभी जगंल के वृक्षों  की कलमें बना ली जायें और सारी धरती को कागज बना ले तो भी हम उस परमपिता परमात्मा की महिमा का गुणगान नही कर सकते । अर्थात कबीर जी कहना चाहते है कि उस परमात्मा की महिमा,गुणों को हम किसी भी उपाय से जान ही नही सकते। कोई भी उपाय नही हैं कि परमात्मा की सारी महिमा का, सारे गुणों को, हम लिख पायें।अर्थात कोई भी उस परमात्मा के कामों का वर्णन नही कर सकता।

कबीर जाति जुलाहा किआ करै, हिरदै बसे गुपाल॥
कबीर रमईआ कंठि मिलु, चूकहि सरब जंजाल॥८२॥


कबीर जी कहते है कि आमजन के मन में जाति-पाति को लेकर अक्सर ऐसा भाव रहता है कि छोटी जाति होने के कारण परमात्मा की प्राप्ती मे बाधा आती है...वास्तव मे ऐसा प्रचार बड़ी व ऊँची जाति के लोगो द्वारा ही किया गया है।किसी को बार बार इस तरह प्रताड़ित करने के कारण प्रताड़ित व्यक्ति हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है। इस श्लोक मे कबीर जी कह रहे हैं कि अब जब मुझे परमात्मा ने अपने गले से लगा लिआ है ऐसे मे इस तरह के समस्त जाल अपने आप ही नष्ट हो गए हैं।अर्थात जाति को लेकर मेरा भ्रम मिट गया है। उस परमात्मा की शरण मे आने के बाद प्रभुमय ही हो जाता है,ऐसे मे कोई भ्रम कैसे रह सकता है।

5 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

कबीरदास की सीख आज भी बहुत उपयोगी हैं!

ghughutibasuti ने कहा…

सही निष्कर्ष तक पहुँचकर सही आचरण करने के लिए विभिन्न लोग बुद्धि, तर्क, नैतिकता, मूल्यों,अन्तर्मन, आत्मा, धर्म,संस्कारों, भगवान, पाप पुण्य आदि का उपयोग करते हैं। कबीर भगवान की स्तुति के माध्यम से आम मनुष्य को सही आचरण करना सिखाते हैं। उनके इस उद्देश्य से नास्तिक भी शायद असहमत न हों।
उनके अधिकतर दोहे मुझे भी बहुत पसंद हैं।
घुघूती बासूती

Smart Indian ने कहा…

संत कबीर के कथन देश-काल से परे हैं, आभार!

कुमार राधारमण ने कहा…

ये जीवन के सूत्र हैं जिन्हें व्यक्त करने का सामर्थ्य कबीर जैसे अनुभवी में ही हो सकता था।

Anita ने कहा…

परमात्मा की महिमा को कबीर या नानक जैसे संत ही जान सकते है, वह अविनाशी, घट घट वासी हमारा परम हितैषी, परम स्नेही परमात्मा बुद्धि से जाना ही नहीं जा सकता !

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