गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

कबीर के श्लोक - ६७

कबीर कारनु सो भईउ, जो कीनो करतारि॥
तिसु बिनु दूसरु को नही, ऐकै सिरजनहारु॥१३३॥


कबीर जी कहते हैं कि कई बार हम चाह कर भी उस परमात्मा से नही जुड़ पाते।इस बात से हमे कभी परेशान नही होना चाहिए।  हम तभी उस से जुड़ पाते हैं जब वह परमात्मा हमे अपने साथ जोड़ना चाहता है।क्योकि उस के बिना कोई दूसरा है ही नही। वह स्वयं ही सारी सृष्टि का करता धरता है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि उस परमात्मा का ध्यान करना हमारा फर्ज है, हमे अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए। लेकिन साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि जब तक उस की कृपा किसी पर नही होती कोई उस परमात्मा के साथ नही जुड़ सकता। क्योकि जब हम कोशिश करते हैं तो सबसे पहले हमारे पुरानें संस्कारों का विसृजन होता है । इस तरह जबतक हम परमात्मा की दष्टि मे सुपात्र नही बनते हम उस से नही जुड़ पाते।

कबीर फल लागे फलनि, पाकनि लागे आंब॥
जाइ पहूचहि खसम कऊ,जऊ बीचि ना खाही कांब॥१३४॥


कबीर जी कहते हैं कि जब वृक्ष पर फल लगते हैं तो वह सहज सहज पकने लगते हैं। इस बीच मौसम की मार उस पर पड़ती रहती है, हवा के थपेड़े उसे झंकझोरते रहते हैं। यदि वह फल उस सब से सही सलामत आगे निकल जाता है तभी वह फल पक कर मालिक तक पहुँचता है।

कबीर जी हमे कहना चाहते हैं जब कोई उस परमात्मा की ओर अपना ध्यान लगाता है तो संसारिक प्रलोभन व मोह माया हमे बहुत तेजी से प्रभावित करने की कोशिश करने लगती है ।जब हम इस सभी से पार पा लेते हैं तभी उस परमात्मा तक पहुँच पाते हैं।


4 टिप्पणियाँ:

केवल राम ने कहा…

बहुत सीख भरी बातें ..ईश्वर के विषय में कबीर जी के विचारों के माध्यम से जानने का अवसर मिला ...आपका हार्दिक धन्यवाद इन बातों को सरल रूप में हम तक पहुँचाने के लिए ...!

Vivek Jain ने कहा…

कबीर के दोहों के लिये धन्यवाद
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

रवि धवन ने कहा…

सही कहा कबीर जी। अगर सभी ये बात समझ जाए तो कितना कुछ बदल सकता है।

Anita ने कहा…

कबीर वाणी अनमोल है !

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