रविवार, 18 मार्च 2012

कबीर के श्लोक - ९९

कबीर हज काबै हऊ जाइ बा आगै मिलिआ खुदाइ॥
सांई मुझ सिऊ लरि परिआ  तुझे किनि फुरमाई गाइ॥१९७॥


कबीर जी कह्ते हैं कि जब मैं हज के लिये काबा की यात्रा पर निकला तो मुझे रास्ते में खुदा मिल गया। जब वह मुझ से मिला तो वह सांई मुझ से लड़ने लगा। कहने लगा कि इस गाय की कुर्बानी मेरे नाम पर करने के लिये तुझे किसने कहा ?

कबीर जी समझाना चाहते है कि परमात्मा के लिये तो सभी जीव समान हैं ऐसे में यह मान कर कि गाय आदि किसी पशु की कुरबानी खुदा के नाम पर देने से वह खुदा खुश हो जायेगा और तेरे सभी गुनाह बख्श देगा यह सब नासमझी की बातें हैं। इसी ओर संकेत करने के लिये कबीर जी ने उपरोक्त विचार व्यक्त किया है।

कबीर हज काबै होइ होइ गईआ केती बार कबीर॥
सांईं मुझ महि किआ खता मुखहु न बोलै पीर॥१९८॥


कबीर जी आगे कहते हैं कि मैं कितनी ही बार सांई के घर उसका दीदार करने के लिये गया हूँ लेकिन सांई मेरे साथ बात ही नही करता। ऐसा लगता है वह मुझ से नाराज हो गया हैं। पता नही तू मुझ मे कैसी कैसी खता देख रहा हैं जो मुझ से हुई हैं।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि परमात्मा के नाम पर जब हम किसी जीव की बलि देते हैं या किसी से कोई जोर जबर्दस्ती करते हैं तो हमारे इस कृत्य से परमात्मा हम से नाराज हो जाता है।जब कि हम यह सब कृत्य उस परमात्मा के नाम पर उसे खुश करने के लिये करते हैं।अर्थात जब हम परमात्मा कि शरण मे जाते हैं तो परमात्मा की हम पर कृपा ना होने का कारण मात्र हमारी ही कुछ भूलें होती है। यदि हम अपनी इन भूलों को सुधार ले तो परमात्मा की कृपा प्राप्त हो सकती है।कबीर जी इसी ओर इशारा कर रहे हैं।





2 टिप्पणियाँ:

Smart Indian ने कहा…

खुदा के नाम पर जीवहत्या करने वालों के लिये प्रेरक सन्देश। आभार!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा!

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