शनिवार, 30 जून 2012

कबीर के श्लोक - १०५



महला ५॥ कबीर कूकर बऊकना,करंग पिछै उठि धाइ॥
करमी सतिगुरु पाइआ,जिनि हऊ लीआ छडाइ॥२०९॥

कबीर जी कहते हैं कि कुत्ता मुरदार के पीछे भौंकता हुआ भागता रहता है लेकिन जिस को सुकर्मों के कारण परमात्मा की कृपा से सतगुरु मिल गया है वह अंहकार रूपी विकारों से छूट गया है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि लालच व विषय -विकारों के पीछे जिस प्रकार कुत्ता भौंकता हुआ भागता रहता है ठीक उसी तरह विकारग्रस्त जीव विकारों के पीछे परमात्मा को भूल कर भागता रहता है। लेकिन परमात्मा की कृपा से यदि सतगुरु मिल जाये तो वह अंहकार रुपी विकारों से छूट सकता है।

महला५॥कबीर धरती साध की,तसकर बैसहि गाहि॥

धरती भारि न बिआपई,उन कऊ लाहू लाहि॥२१०॥

कबीर जी कह्ते हैं कि यह धरती तो उन के लिये है जो परमात्मा की कृपा को पहचानते हैं लेकिन इस धरती पर अक्सर चोर विकारी ही ज्यादातर देखे जाते हैं।लेकिन फिर भी धरती पर इनके भार का कोई असर नही होता ।क्योकि उनको अपना भार स्वयं ढोना पड़ता है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि परमात्मा ने हमे उस परमानंद को भोगने के लिये भेजा है लेकिन हम यहाँ विषय -विकारों में ही फँसे रहते हैं और अपना जीवन व्यर्थ गवा जाते हैं।जिस से हमारा अपना ही नुकसान होता है।

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