मंगलवार, 10 जुलाई 2012

कबीर के श्लोक - १०६

कबीर चावल कारने तुख कऊ मुहली लाइ॥
संगि कुसंगी बैसतै तब पूछै धरम राइ॥२११॥

कबीर जी कहते हैं कि चावलों के लिये हमे कैसी कैसी मेहनत करनी पड़ती है,गारे मे हाथ डाल कर चावल की पौधे रोपनें पड़ते है और अच्छे बुरे की परवाह ना करते हुए क्या कुछ करना पड़ता है। कबीर जी कहते हैं कि हम जो कुछ भी करते हैं, अच्छा या बुरा उसका हिसाब धर्मराज जरूर माँगेगा।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि परमात्मा हमारे सभी कामों पर नजर रखे हुए हैं हम जो भी करते हैं उसका हिसाब जरूर देना पड़ेगा।कबीर जी इस लिये कह रहे हैं, क्योकि ज्यादातर जीव इस बात को सदा भूले रहते हैं कि परमात्मा की नजर सदा उनके कर्मों पर लगी रहती है।

नामा माइआ मोहिआ कहै तिलोचनु मीत॥
 काहे छीपहु छाइलै राम न लावहु चीतु॥२१२॥

कबीर जी यहाँ त्रिलोचन और नामा जी के वार्तालाप का जिक्र करते हुए कहते हैं कि त्रिलोचन जी नामा से कहते हैं कि तुम माया में क्यो उलझे हुए लगते हो। जब देखो अपने काम मे लगे रहते हो, रजाईयो को टाँकने मे लगे रहते हो। उस परमात्मा का नाम क्यो नही लेते।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि भक्त भी देखने मे तो ऐसे ही लगते हैं की वे संसारिक कार-विहार में उलझे हुए हैं। ऐसे लगता है जैसे वे अपने कामों मे डूबे हुए हैं और परमात्मा का ध्यान करने के लिये उनके पास समय ही नही है।

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपनें विचार भी बताएं।