सोमवार, 22 मार्च 2010

कबीर के श्लोक - १४



कबीर ऐह तनु जाइगा, सकहु त लेहु बहोरि॥
नांगे पावहु ते गऐ , जिन के लाख करोरि॥२७॥

कबीर जी कहते है कि ये शरीर निश्चय ही नष्ट हो जाएगा।यदि किसी को यकीन नही है तो वह प्रयत्न कर के देख ले। इस शरीर को नष्ट होने से कभी बचाया नही जा सकता।कबीर जी कहते है कि चाहे कोई कितनी भी धन दौलत का मालिक हो, उन्हें अंत मे नंगे पाँव ही यहाँ से जाना पड़ता है।

कबीर जी हमे बार बार यही समझना चाहते हैं कि ये संसार नाशवान है। इस से कोई नही बच सकता।एक दिन सभी को सभी कुछ यही छोड़ कर खाली हाथ यहाँ से जाना ही पड़ता है।कबीर जी व परमात्मा से एकाकार हुए लोग हमे यह बात बार-बार इस लिए बताते रहते हैं क्योकि संसारी माया इतनी प्रबल है कि हम इस बात को भुले ही रहते हैं कि एक दिन हमे इस संसार को छोड़ कर जाना ही है। हमारे इस शरीर ने नष्ट हो ही जाना है। इस दुनिया से अंत मे हमे खाली हाथ ही जाना है। लेकिन हम इस बात को भुल कर दुनियावी प्रलोभनों की प्राप्ती के लिए सदा प्रयत्नशील रहते हैं।

कबीर ऐह तनु जाइगा, कवनै मारगि लाइ॥
कै संगति करि साध की, कै हरि के गुन गाइ॥२८॥

कबीर जी फिर से कह रहे हैं कि यह शरीर तो निश्चय ही नष्ट हो जाएगा। इस लिए क्या तुम जानते हो इसे किस काम मे लगाना चाहिए ? फिर स्वंय ही कहते है कि या तो साधु की संगत कर लेनी चाहिए या फिर उस परमात्मा की भक्ति मे लग जाना चाहिए।
 कबीर जी कहना चाहते हैं कि इस नाशवान शरीर का उपयोग हमे बहुत सोच समझ कर करना चाहिए। क्योकि एक ओर तो हमारे सामने दुनियावी राग-रंग है। जो सुख का आभास तो हमे कराते है लेकिन अंतत: वे दुख ही देते हैं। वही दुसरी ओर उस प्रभु की भक्ति है, उस के प्यारो की साध संगत है। अत: हमे इसी को चुनना चाहिए।

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