कबीर डूबा था पै ऊबरिउ, गुन की लहरि झबकि॥
जब देखिउ बेड़ा जरजरा, तब उतरि परिउ हऊ फरकि॥६७॥
कबीर जी कहते है कि मैं डूबने वाला ही था कि समझ की लहर ने धक्का देकर मुझे फिर उबार लिआ और जब मैने देखा कि यह बेड़ा तो कमजोर है, कभी भी डूब सकता है तो मैं उस पर से उतर गया।
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि इस संसार रूपी भवसागर मे मोह मायादि मे रमे रहने के कारण इंसान भटकता रहता है, लेकिन जब हमे जीवन मे कोई ऐसा झटका लगता है जो हमे भीतर तक झंकझोर देता है, हमे संसार की व्यर्थता का बोध करा देता है तो हमे समझ आता है कि हम मोह मायादि के कारण व्यर्थ के कामों मे ही उलझे हुए हैं, इन कामो से हमे कोई फायदा होने वाला नही । तब हम उस परमात्मा की ओर रुख करते हैं। जिस द्वार पर जाने मे कोई रोक टोक नही होती। अर्थात कबीर जी समझाना चाहते है कि संसारिक कामो को करने के बाद, विषय, विकारादि मे फँसने के बाद ही हमे संसार की व्यर्थता का बोध होता है। तभी हमे यह एह्सास होता है कि जिस बेड़े पर हम सवार थे वह कितना कमजोर है, इस बात की समझ आने पर ही हम उसे छोड़ सकते हैं ।लेकिन उसके लिए हमे "गुन की लहर" को समझने की बुद्धि भी होनी चाहिए।
कबीर पापी भगति न भावई, हरि पूजा न सुहाइ॥
माखी चंदनु परहरै, जह बिगंध तह जाइ॥६८॥
कबीर जी अब उन लोगो के बारे मे कह रहे हैं जिन्हें इस "गुन की लहर" की समझ आती ही नही। वे कहते हैं कि ऐसे पापी लोगो को परमात्मा की भक्ति नही भाती और ना ही उन्हें ऐसे लोग भाते हैं जो उस परमात्मा की पूजा करने मे लगे हुए हैं।यह सब ठीक ऐसे ही है जैसे मख्खी को चंदन पसंद नही आता, वह उस पर नही बैठती। लेकिन जहाँ पर गंदगी पड़ी होती है वहीं जा कर बैठ जाती है।
कबीर जी हमे समझाना चाहते है कि संसार मे दो तरह के लोग हैं एक तो वे लोग हैं जो संसारादिक मोह माया मे रमे तो रहते हैं लेकिन कभी कभी जीवन मे उतार-चड़ाव का अनयास झटका लगने पर अर्थात अपने किसी नुकसान के कारण या अपने किसी प्यारे के बिछुड़ने आदि के कारण, सचेत हो जाते हैं।उन्हें संसार की व्यर्थता का बोध हो जाता है। लेकिन दूसरी तरह के ऐसे लोग भी हैं जिन्हें कभी किसी बात का कोई असर होता ही नही। ऐसे लोग सदा विषय विकारो के पीछे ही भागते रहते हैं और कभी उस से उबर नही पाते। क्योकि उन्हें इसी मे सुख का एहसास होता है।जबकि ये सुख अंतत: दुख ही देते हैं।
जब देखिउ बेड़ा जरजरा, तब उतरि परिउ हऊ फरकि॥६७॥
कबीर जी कहते है कि मैं डूबने वाला ही था कि समझ की लहर ने धक्का देकर मुझे फिर उबार लिआ और जब मैने देखा कि यह बेड़ा तो कमजोर है, कभी भी डूब सकता है तो मैं उस पर से उतर गया।
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि इस संसार रूपी भवसागर मे मोह मायादि मे रमे रहने के कारण इंसान भटकता रहता है, लेकिन जब हमे जीवन मे कोई ऐसा झटका लगता है जो हमे भीतर तक झंकझोर देता है, हमे संसार की व्यर्थता का बोध करा देता है तो हमे समझ आता है कि हम मोह मायादि के कारण व्यर्थ के कामों मे ही उलझे हुए हैं, इन कामो से हमे कोई फायदा होने वाला नही । तब हम उस परमात्मा की ओर रुख करते हैं। जिस द्वार पर जाने मे कोई रोक टोक नही होती। अर्थात कबीर जी समझाना चाहते है कि संसारिक कामो को करने के बाद, विषय, विकारादि मे फँसने के बाद ही हमे संसार की व्यर्थता का बोध होता है। तभी हमे यह एह्सास होता है कि जिस बेड़े पर हम सवार थे वह कितना कमजोर है, इस बात की समझ आने पर ही हम उसे छोड़ सकते हैं ।लेकिन उसके लिए हमे "गुन की लहर" को समझने की बुद्धि भी होनी चाहिए।
कबीर पापी भगति न भावई, हरि पूजा न सुहाइ॥
माखी चंदनु परहरै, जह बिगंध तह जाइ॥६८॥
कबीर जी अब उन लोगो के बारे मे कह रहे हैं जिन्हें इस "गुन की लहर" की समझ आती ही नही। वे कहते हैं कि ऐसे पापी लोगो को परमात्मा की भक्ति नही भाती और ना ही उन्हें ऐसे लोग भाते हैं जो उस परमात्मा की पूजा करने मे लगे हुए हैं।यह सब ठीक ऐसे ही है जैसे मख्खी को चंदन पसंद नही आता, वह उस पर नही बैठती। लेकिन जहाँ पर गंदगी पड़ी होती है वहीं जा कर बैठ जाती है।
कबीर जी हमे समझाना चाहते है कि संसार मे दो तरह के लोग हैं एक तो वे लोग हैं जो संसारादिक मोह माया मे रमे तो रहते हैं लेकिन कभी कभी जीवन मे उतार-चड़ाव का अनयास झटका लगने पर अर्थात अपने किसी नुकसान के कारण या अपने किसी प्यारे के बिछुड़ने आदि के कारण, सचेत हो जाते हैं।उन्हें संसार की व्यर्थता का बोध हो जाता है। लेकिन दूसरी तरह के ऐसे लोग भी हैं जिन्हें कभी किसी बात का कोई असर होता ही नही। ऐसे लोग सदा विषय विकारो के पीछे ही भागते रहते हैं और कभी उस से उबर नही पाते। क्योकि उन्हें इसी मे सुख का एहसास होता है।जबकि ये सुख अंतत: दुख ही देते हैं।
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