कबीर बैद मूआ, रोगी मूआ, मूआ सब संसारु॥
एक कबीरा ना मूआ, जिह नाही रोवनहारु॥६९॥
कबीर जी कहते हैं कि इलाज करने वाला भी मर गया और रोगी भी मर गया और वे भी मर गए जो इस संसार मे रहते हैं। लेकिन कबीर जी कहते है वे नही मरा जो किसी वस्तु, कामनाओ के लिए कभी नही रोया।
कबीर जी हमे समझाना चाहते है कि इस संसार मे बहुत से लोग ऐसे हैं जो दूसरो को आध्यात्मिक उपदेश देकर परमात्मा को पाने का रास्ता बता रहे हैं, लेकिन वे स्वयं कभी उस रास्ते पर चलते ही नही , वे उस रास्ते को जानते ही नही। वे धर्म ग्रंथों को रट कर ही मान बैठे हैं कि उन्होने उस परमात्मा को पा लिआ।इसी लिए वे सोचते है कि मात्र दूसरो को उपदेश देकर वे धार्मिक हो गए, उस परमात्मा की कृपा को पा गए। लेकिन कबीर जी कहते है कि ऐसे लोग भी मरे हुओ के समान ही हैं और वे जिन लोगो को यह सब समझा रहे हैं वे भी मरे हुए हैं अर्थात मरे हुए लोग वे हैं जो परमात्मा से दूर हो चुके हैं,उसे भूल चुके हैं, उन्ही लोगो को कबीर जी मरा हुआ बता रहे हैं। कबीर जी कह्ते हैं कि सारा संसार ही ऐसी मत्यु मे पड़ा है। लेकिन आगे कहते हैं कि जीवित आदमी की पहचान यह हैं कि वह कभी किसी बात के लिए, किसी कामना के लिए नही रोता।जो परमात्मा दे रहा है उसी को खुशी से स्वीकार कर लेता है और परमात्मा का धन्यवाद करता है। वह परमात्मा से कभी शिकायत नही करता। ऐसे आदमी को कबीर जी जीवित मानते है अर्थात धार्मिक मानते हैं। कबीर जी ने हमारे आत्म अवलोकन करने के लिए यह श्लोक लिखा है ताकि हम अपनी स्थिति को पहचान सके।
कबीर रामु न धिआइउ, मोटी लागी खोरि॥
काइआ हांडी काठ की, ना उह चर्है बहोरि॥७०॥
कबीर जी कहते है कि जिन्होने राम का ध्यान नही किया, उस का सिमरन नही किया। जो भीतर से बिल्कुल खोखले हैं और यह भी जानते हैं कि उन्होने परमात्मा का अनुभव किया ही नही है। ऐसे लोग काठ की हांडी की तरह हैं जिसे बार-बार आग पर नही चड़ाया जा सकता।
कबीर जी इस श्लोक मे पिछले श्लोक मे कहे गए उपदेशको और ऐसे लोगो के बारे मे कह रहे हैं जो परमात्मा को पाने का झूठा दावा करते रहते हैं। कबीर जी समझाना चाहते है कि ऐसे लोग जो परमात्मा का ध्यान, अपमात्मा का अनुभव तो कर नही पाए, लेकिन संसार के सामने ऐसा व्यवाहर करते हैं जैसे उन्होने परमात्मा का अनुभव पा लिआ है और वे लोगो को उपदेश करने लगते हैं, गुरू बन कर बैठ जाते हैं। लेकिन ऐसे लोगो के बारे मे कबीर जी कहते हैं कि यह ज्यादा देर तक किसी को धोखा नही दे पाते। क्योकि एक ना एक दिन उन की असलियत सामने आ ही जाती है। इसी लिए कबीर जी उदाहरण देते हुए समझा रहे हैं कि जिस प्रकार काठ की हांडी एक ही बार चूल्हे पर चड़ाई जा सकती है, उसे कोई बार-बार नही चड़ा सकता । ठीक इसी तरह झूठे गुरू उपदेशक एक बार तो किसी को धोखा दे सकते हैं लेकिन दुबारा नही दे सकते। (यदि साधक के ह्र्दय मे परमात्मा को पाने की सच्ची लगन होगी तो वह ऐसे लोगो को जरूर पहचान लेता है।)
एक कबीरा ना मूआ, जिह नाही रोवनहारु॥६९॥
कबीर जी कहते हैं कि इलाज करने वाला भी मर गया और रोगी भी मर गया और वे भी मर गए जो इस संसार मे रहते हैं। लेकिन कबीर जी कहते है वे नही मरा जो किसी वस्तु, कामनाओ के लिए कभी नही रोया।
कबीर जी हमे समझाना चाहते है कि इस संसार मे बहुत से लोग ऐसे हैं जो दूसरो को आध्यात्मिक उपदेश देकर परमात्मा को पाने का रास्ता बता रहे हैं, लेकिन वे स्वयं कभी उस रास्ते पर चलते ही नही , वे उस रास्ते को जानते ही नही। वे धर्म ग्रंथों को रट कर ही मान बैठे हैं कि उन्होने उस परमात्मा को पा लिआ।इसी लिए वे सोचते है कि मात्र दूसरो को उपदेश देकर वे धार्मिक हो गए, उस परमात्मा की कृपा को पा गए। लेकिन कबीर जी कहते है कि ऐसे लोग भी मरे हुओ के समान ही हैं और वे जिन लोगो को यह सब समझा रहे हैं वे भी मरे हुए हैं अर्थात मरे हुए लोग वे हैं जो परमात्मा से दूर हो चुके हैं,उसे भूल चुके हैं, उन्ही लोगो को कबीर जी मरा हुआ बता रहे हैं। कबीर जी कह्ते हैं कि सारा संसार ही ऐसी मत्यु मे पड़ा है। लेकिन आगे कहते हैं कि जीवित आदमी की पहचान यह हैं कि वह कभी किसी बात के लिए, किसी कामना के लिए नही रोता।जो परमात्मा दे रहा है उसी को खुशी से स्वीकार कर लेता है और परमात्मा का धन्यवाद करता है। वह परमात्मा से कभी शिकायत नही करता। ऐसे आदमी को कबीर जी जीवित मानते है अर्थात धार्मिक मानते हैं। कबीर जी ने हमारे आत्म अवलोकन करने के लिए यह श्लोक लिखा है ताकि हम अपनी स्थिति को पहचान सके।
कबीर रामु न धिआइउ, मोटी लागी खोरि॥
काइआ हांडी काठ की, ना उह चर्है बहोरि॥७०॥
कबीर जी कहते है कि जिन्होने राम का ध्यान नही किया, उस का सिमरन नही किया। जो भीतर से बिल्कुल खोखले हैं और यह भी जानते हैं कि उन्होने परमात्मा का अनुभव किया ही नही है। ऐसे लोग काठ की हांडी की तरह हैं जिसे बार-बार आग पर नही चड़ाया जा सकता।
कबीर जी इस श्लोक मे पिछले श्लोक मे कहे गए उपदेशको और ऐसे लोगो के बारे मे कह रहे हैं जो परमात्मा को पाने का झूठा दावा करते रहते हैं। कबीर जी समझाना चाहते है कि ऐसे लोग जो परमात्मा का ध्यान, अपमात्मा का अनुभव तो कर नही पाए, लेकिन संसार के सामने ऐसा व्यवाहर करते हैं जैसे उन्होने परमात्मा का अनुभव पा लिआ है और वे लोगो को उपदेश करने लगते हैं, गुरू बन कर बैठ जाते हैं। लेकिन ऐसे लोगो के बारे मे कबीर जी कहते हैं कि यह ज्यादा देर तक किसी को धोखा नही दे पाते। क्योकि एक ना एक दिन उन की असलियत सामने आ ही जाती है। इसी लिए कबीर जी उदाहरण देते हुए समझा रहे हैं कि जिस प्रकार काठ की हांडी एक ही बार चूल्हे पर चड़ाई जा सकती है, उसे कोई बार-बार नही चड़ा सकता । ठीक इसी तरह झूठे गुरू उपदेशक एक बार तो किसी को धोखा दे सकते हैं लेकिन दुबारा नही दे सकते। (यदि साधक के ह्र्दय मे परमात्मा को पाने की सच्ची लगन होगी तो वह ऐसे लोगो को जरूर पहचान लेता है।)
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