सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

कबीर के श्लोक - ५७

कबीर सभु जगु हऊ फिरिउ, मांदलु कंध चढाइ॥
कोई काहू को नही, सभ देखी ठोकि बजाइ॥११३॥

कबीर जी कहते हैं कि कंधे पर ढोल टाँग कर मै उसे बजाता फिरता रहा और सारे जगत मे भ्रमण कर देख लिआ है कि यहाँ ऐसा कोई भी नही जो सदा किसी का साथ निभाता है। इस बात को अच्छी तरह समझ कर देख लिआ है।

कबीर जी हमें समझाना चाहते हैं कि इस जगत में तुम्हारा साथ सदा किसी ने नही देना।चाहो तो किसी से भी पूछ लो कि ऐसी कोई चीज या आदमी है जो सदा तुम्हारा साथ निभा सके ? इन प्रश्नों का उत्तर होगा "नही!" सभी यही जवाब देगें। भले ही जितनी मर्जी जाँच -पड़ताल कर लो। अर्थात कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि एकमात्र ईश्वर का नाम ही ऐसा हैं जो सदा साथ निभा सकता है।

मारगि मोती बीथरे, अंधा निकसिउ आइ॥
जोति बिना जगदीस की,जगतु उलंघे जाइ॥११४॥

कबीर जी आगे कहते हैं कि हमारे मार्ग में मोती बिखरे पड़े हैं लेकिन अंधा उन्हें देख नही पाता और आगे निकल जाता है। उस का एकमात्र कारण यही है कि हमारे पास उस परमात्मा की दी हुई ज्योति नही है। इस कारण सारा जगत ही इन्हें लाँघता हुआ  चला जा रहा है।

कबीर जी ने पिछले श्लोक मे हमे समझाया था कि एकमात्र परमात्मा का नाम ही हमारा साथ निभाता है लेकिन यह साथ तभी मिलता है जब ईश्वर हमे अपने आप को पहचानने की समझ देता है।यदि यह ज्योति हमारे पास नही है तो हम मोतीयो रूपी यह जो जीवन दिया है, जिस मे हम ईश्वर के नाम रूपी मोतीयों को पा सकते हैं, नही पा पाते।अर्थात कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमे ईश्वर की कृपा पाने की चैष्टा करनी चाहिए ताकी ईश्वर हमपर कृपा करे और हम अपने जीवन को ईश्वरमय कर परमानंद मे जीयें।

4 टिप्पणियाँ:

विशाल ने कहा…

कबीर जी की वाणी की सुन्दर व्याख्या.
आभार

राज भाटिय़ा ने कहा…

वाह जी आप ने कबीर जी की बाणी से परिचाय करवा दिया, धन्यवाद

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

sunder prastuti hetu abhaar.....

Aditya Tikku ने कहा…

Atiutam-***

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपनें विचार भी बताएं।