कबीर जगु बाधिउ जिह जेवरी, तिह मत बंधहु कबीर॥
जै हरि आटा लोन जिउ, सोन समानि सरीर॥११७॥
कबीर जी कहते हैं कि ये सारा संसार ममता और मोह रूपी रस्सी के साथ बंधा हुआ है।कबीर जी कहते हैं कि तुम भी इसी बधंन में मत बंध जाना। इन भौतिक कामनाओं के मोह के कारण ,तुझे जो यह अमुल्य सोने के समान शरीर मिला है ,इसका मिलना व्यर्थ ही जायेगा यदि तू संसारिक मोह के बधंनों में ही फँसा रहा।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि यह जो मनु्ष्य जन्म मिला है यह बहुत कीमती है। हमे समय रहते इसका उपयोग परमात्मा की प्राप्ती के लिए करना चाहिए।अन्यथा ये मनुष्य का शरीर व्यर्थ के कामों मे ही उलझा रहेगा और बेकार ही जायेगा।कबीर जी इसी लिए हमे सचेत कर रहे हैं।
कबीर हंस उडिउ तनु गाडिउ,सोझाई सैनाह॥
अजहू जीउ न छोडई, रंकाई नैनाह॥११८॥
कबीर जी कहते हैं कि ये संसारिक मोह ममता का बधंन बहुत मजबूत होता है जीव अपने अंतिम समय में, जब मौत उसके सिर पर खड़ी होती है, उस समय भी ये जीव इन मोह ममता आदि के बधंनों से मुक्त नही हो पाता। उस समय भी इसी का चिंतन करता रहता है।
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि यदि हम इन मोह ममता रूपी बधंनो मे बंधें रहेगें तो अपने जीवन के अंतिम समय में यह बधंन हमे इतनी मजबूती से जकड़ लेगें की हम इन्हें नही छोड़ पायेगें।इसी लिए कबीर जी हमे सचेत करना चाहते हैं कि समय रहते ही हमें इन बधंनो से आजाद हो जाना चाहिए। अन्यथा इनसे छुटकारा पाना हमारे लिए असंम्भव हो जायेगा।
जै हरि आटा लोन जिउ, सोन समानि सरीर॥११७॥
कबीर जी कहते हैं कि ये सारा संसार ममता और मोह रूपी रस्सी के साथ बंधा हुआ है।कबीर जी कहते हैं कि तुम भी इसी बधंन में मत बंध जाना। इन भौतिक कामनाओं के मोह के कारण ,तुझे जो यह अमुल्य सोने के समान शरीर मिला है ,इसका मिलना व्यर्थ ही जायेगा यदि तू संसारिक मोह के बधंनों में ही फँसा रहा।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि यह जो मनु्ष्य जन्म मिला है यह बहुत कीमती है। हमे समय रहते इसका उपयोग परमात्मा की प्राप्ती के लिए करना चाहिए।अन्यथा ये मनुष्य का शरीर व्यर्थ के कामों मे ही उलझा रहेगा और बेकार ही जायेगा।कबीर जी इसी लिए हमे सचेत कर रहे हैं।
कबीर हंस उडिउ तनु गाडिउ,सोझाई सैनाह॥
अजहू जीउ न छोडई, रंकाई नैनाह॥११८॥
कबीर जी कहते हैं कि ये संसारिक मोह ममता का बधंन बहुत मजबूत होता है जीव अपने अंतिम समय में, जब मौत उसके सिर पर खड़ी होती है, उस समय भी ये जीव इन मोह ममता आदि के बधंनों से मुक्त नही हो पाता। उस समय भी इसी का चिंतन करता रहता है।
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि यदि हम इन मोह ममता रूपी बधंनो मे बंधें रहेगें तो अपने जीवन के अंतिम समय में यह बधंन हमे इतनी मजबूती से जकड़ लेगें की हम इन्हें नही छोड़ पायेगें।इसी लिए कबीर जी हमे सचेत करना चाहते हैं कि समय रहते ही हमें इन बधंनो से आजाद हो जाना चाहिए। अन्यथा इनसे छुटकारा पाना हमारे लिए असंम्भव हो जायेगा।
6 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर, धन्यवाद!
कबीर जी का जीवन दर्शन अगर अपना लें तो सब दुखों से छूट जायें। शानदार प्रस्तुति। बधाई।
ममता की बेडियाँ इतनी सूक्ष्म हैं कि दिखाई भी नहीं देतीं, बाहर की ममता छोड़ भी दें तो मन व तन की ममता पकड़ लेती है जो उतनी ही बाधक है !
बहुत सुन्दर, धन्यवाद|
बहुत सुन्दर व्याख्या करते है आप.उम्मीद करता हूँ कि गुरू नानक देव जी की वाणी की व्याख्या जल्द देखने को मिलेगी.
सलाम.
इस परमार्थ कार्य हेतु शुभकामनाएं।
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