कबीर चुगै चितारै भी चुगै,चुगि चुगि चितारे॥
जैसे बचरहि कूंज, मन माइआ ममता रे॥१२३॥
कबीर जी कहते हैं कि जिस तरह पक्षी दाना चुगते समय अपने बच्चों के लिये भी दाना ले जाना है इस बात का सदा ध्यान लगाये रखते हैं ,ठीक उसी तरह जीव का ध्यान भी परमात्मा का नाम लेते समय हमेशा संसारी कार-विहार मे ध्यान लगा रहता है।
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि हम जब भी कोई कार्य करते हैं हमारा ध्यान भूत और वर्तमान मे या वर्तमान और भविष्य मे एक साथ बना रहता है।अर्थात परमात्मा का ध्यान करते समय हम भूत और भविष्य का चिंतन करते रहते हैं।
कबीर अंबर घनहरु छाइआ,बरखि भरे सर ताल॥
चात्रिक जिउ तरसत रहै,तिन को कौनु हवालु॥१२४॥
कबीर जी कहते हैं कि बादल आकाश मे छा जाता है और बरखा कर के सभी तालाब और सरोसरो को भर देता है।लेकिन चात्रिक पक्षी फिर भी बारिस की बूँद को तरसता रहता हैं और कूकता रहता है।क्यों कि उस का स्वाभाव है कि वह मात्र बारिश की बूँद से ही अपनी प्यास बुझाना चाहता है।इस लिये वह सदा परेशान ही होता है।
कबीर जी समझाना चाहते हैं कि जिस प्रकार चात्रिक पक्षी ताल और सरोवर भरे होने पर भी सिर्फ बारिश की बूँद से ही अपनी प्यास बुझाना चाहता है ठीक उसी तरह जीव माया के प्रति ही आसक्त रहता है जबकि परमात्मा सब जगह मौजूद रहता है लेकिन वह उस स्थाई परमानंद को छोड़ कर क्षणिक सुखों के पीछे भागता रहता है।
जैसे बचरहि कूंज, मन माइआ ममता रे॥१२३॥
कबीर जी कहते हैं कि जिस तरह पक्षी दाना चुगते समय अपने बच्चों के लिये भी दाना ले जाना है इस बात का सदा ध्यान लगाये रखते हैं ,ठीक उसी तरह जीव का ध्यान भी परमात्मा का नाम लेते समय हमेशा संसारी कार-विहार मे ध्यान लगा रहता है।
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि हम जब भी कोई कार्य करते हैं हमारा ध्यान भूत और वर्तमान मे या वर्तमान और भविष्य मे एक साथ बना रहता है।अर्थात परमात्मा का ध्यान करते समय हम भूत और भविष्य का चिंतन करते रहते हैं।
कबीर अंबर घनहरु छाइआ,बरखि भरे सर ताल॥
चात्रिक जिउ तरसत रहै,तिन को कौनु हवालु॥१२४॥
कबीर जी कहते हैं कि बादल आकाश मे छा जाता है और बरखा कर के सभी तालाब और सरोसरो को भर देता है।लेकिन चात्रिक पक्षी फिर भी बारिस की बूँद को तरसता रहता हैं और कूकता रहता है।क्यों कि उस का स्वाभाव है कि वह मात्र बारिश की बूँद से ही अपनी प्यास बुझाना चाहता है।इस लिये वह सदा परेशान ही होता है।
कबीर जी समझाना चाहते हैं कि जिस प्रकार चात्रिक पक्षी ताल और सरोवर भरे होने पर भी सिर्फ बारिश की बूँद से ही अपनी प्यास बुझाना चाहता है ठीक उसी तरह जीव माया के प्रति ही आसक्त रहता है जबकि परमात्मा सब जगह मौजूद रहता है लेकिन वह उस स्थाई परमानंद को छोड़ कर क्षणिक सुखों के पीछे भागता रहता है।
7 टिप्पणियाँ:
संत कबीरदास की इस जनोपयोगी शिक्षा के लिये आभार!
आदरणीय परमजीत सिंह बाली जी
सादर प्रणाम
कबीर जी की वाणी जीवन के तमाम पहलुओं पर प्रकाश डालती है , आपने बहुत सुन्दरता से उनके दोहों की व्याख्या की है...आपकी स्वस्थ प्रतिक्रिया और मार्गदर्शन मेरे दुसरे ब्लॉग धर्म और दर्शन पर अपेक्षित है ...आपका आभार
सचमुच हम सदा भूत या भविष्य के बारे में सोचते रहकर परमात्मा रूपी वर्तमान से वंचित रह जाते हैं तथा जो सदा प्राप्त है उसे भुला कर जो नहीं है उसकी तलाश में दुःख मनाते रहते हैं !
कबीरदास की इस जनोपयोगी शिक्षा के लिये आभार!
कबीरदास के सदाबहार दोहं को लगाने के लिए आभार!
सच है.... चातक के साथ जो हमारी तुलना है.. वोह अत्यंत सच है..
आभार इन दोहों के लिए.
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