शनिवार, 7 अगस्त 2010

कबीर के श्लोक -३२

कबीर सुपनै हू बरड़ाइ कै, जिह मुखि निकसै रामु॥
ता के पग की पाहनी, मेरे तन को चामु॥६३॥

कबीर जी कहते है कि जिन लोगो के मुँह से सपने में भी परमात्मा का नाम ही निकलता है, मैं उनके पैरो में अपनी चमड़ी के जूते बना कर उनका सम्मान करना चाहुँगा।

कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि हम वही सपने देखते है, उसी से संबधित सपने देखते है जिस का ध्यान हम दिनभर ज्यादा करते रहते हैं। इस लिए उसी को सपने में भी परमात्मा के नाम का सपना दिखाई देगा, जो सदैव उस परमात्मा के ध्यान में ही लगा रहता है। कबीर जी कहना चाहते है कि ऐसे लोग जिन्हें अब सपने मे भी परमात्मा विस्मरण नही होता ऐसे लोग बहुत दुर्लभ होते हैं, ऐसे लोगो का संग पाने मे यदि हम अपना सर्वस अर्पण कर दे तो वह भी बहुत कम ही होगा। इसी लिए वे उनके पैरो मे अपनी चमड़ी की जूती बना कर पहनाने की बात कर रहे हैं। अर्थात कबीर जी कहना चाहते है कि यदि हम दिनभर उसी परमात्मा का ध्यान करते रहेगें तो रात्री मे सोते समय भी हमारा ध्यान उसी परमात्मा मे अपने आप ही लगा रहेगा।


कबीर माटी के हम पूतरे, मानसु राखिऊ नाऊ॥
चारि दिवस के पाहुने, बड बड रूंधहि ठाऊ॥६४॥

कबीर जी कहते हैं कि वास्तव में हम तो मिट्टी के बनाए हुए पुतले हैं, जिस का नाम हमने मनुष्य रख लिआ है। जिस दुनिया मे हम रहते हैं वहाँ हम सिर्फ चार दिन के ही मेहमान हैं। अर्थात हम ज्यादा दिनों तक यहाँ रहने वाले नहीं है। लेकिन फिर भी हम यहाँ अधिक से अधिक जगह पाने की कोशिश मे ही लगे रहते हैं। अधिक से अधिक इकठ्ठा करने मे ही लगे रहते हैं।

कबीर जी कहना चाहते है कि हम मिट्टी के पुतले भर ही है जिस मे परमात्मा ने अपनी ज्योति रखी हुई है। हम इस मिट्टी के शरीर को ही मनुष्य का नाम देते हैं। इस संसार मे आकर हम भूल ही जाते हैं कि हम यहाँ एक मेहमान की तरह ही हैं, जिसे देर सबेर एक दिन सब कुछ छोड़ कर वापिस अपने घर लौट जाना है। तब हमारा यह शरीर भी यही मिट्टी मे मिल जाएगा। लेकिन हम यहाँ आकर सब कुछ पा लेना चाहते हैं, हम चाहते हैं कि अधिक से अधिक पदार्थो को हम इकठ्ठा कर लें। अधिक से अधिक संसारिक सुखो के साधन इकठ्ठे कर ले। क्योकि हमारे मन मे यह ख्याल ही नही आता कि एक दिन सब कुछ यही छोड़ पर हमे यहाँ से खाली हाथ जाना पड़ेगा। अर्थात कबीर जी हमे समझाना चाह्ते हैं कि इस क्षण भुगंर जीवन का सदुपयोग करने की बजाय कहीं हम व्यर्थ मे ही ना गँवा कर जाएं।

3 टिप्पणियाँ:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

कबीर की वाणी ही सच्चा दर्शन है जो सही राह दिखाता है

anshumala ने कहा…

kabil ke dohe wo bhi usake gudh artho ke sat padha kar achcha laga .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कबीर की वाणी जीवन दर्शन है ..

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