शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

कबीर के श्लोक - ५२

कबीर जो हम जंतु बजावते टूटि गईं सभ तार॥
जंतु बिचारा किआ करै चले बजावनहार॥१०३॥

कबीर जी कहते हैं कि जिस यंत्र को हम बजा रहे हैं उस यंत्र के तो सभी तार टूट ही गये हैं।कबीर जी आगे कहते हैं कि इस मे इस यंत्र का क्या कसूर है,यह तो घिस-पिट कर एक दिन नष्ट होना ही था। लेकिन यह यंत्र भी क्या करे,जो इस यंत्र को बजा रहा था वह भी चला गया।

कबीर जी हमे इस श्लोक द्वारा समझाना चाहते हैं कि हमारे इस शरीर रूपी यंत्र को यह मन विषय-विकारों में उलझा कर खूब नचाता रहता है,लेकिन जब हम उस परमात्मा के नाम का सहारा पकड़ लेते हैं तो इस शरीर रूपी यंत्र के विषय-विकार रूपी तार टूट जाते हैं, ऐसे मे यह शरीर रूपी यंत्र विकारों से मुक्त हो जाता है। आगे कबीर जी हमे समझाते है कि सिर्फ यह तार ही नही टूटते बल्कि इस यंत्र को बजाने वाला हमारा मन भी चला जाता है अर्थात हमारा मन एक जगह ठहर जाता है।इस श्लोक मे कबीर जी परमात्मा के नाम का महत्व समझाना चाहते है।


कबीर माइ मूँढऊ तिहु गुरू की,जा ते भरम न जाइ॥
आप ढुबे चहु बेद महि,चेले दिऐ बहाइ॥१०४॥

कबीर जी कहते हैं कि ऐसे गुरू जो तुम्हारे भरमों को दूर नही कर सकते, उन गुरुओं की तो माँ का सिर ही मूंड देना चाहिए।क्योकि ऐसे गुरू स्वयं तो कर्म कांडो मे पड़े रहते है और अपने चेलों को भी इन्हीं कर्मकांडो मे उलझा देते हैं।

कबीर जी हमे कहना चाहते हैं कि ( जैसा की पिछले श्लोक मे कहा है) सारा खेल तो इस मन का है। लेकिन बहुत से गुरु स्वयं तो वेदों को रट कर, उन की सुन्दर सुन्दर व्याख्याएं कर के अपने चेलों को भी भरमाते हैं और शास्त्र आदि रटवाने लगते है। कबीर जी कहते हैं कि इस तरह के कर्मकांडो से कोई लाभ नही होने वाला। ऐसे गुरू स्वयं तो भटकते है ,साथ ही अपने चेलों को भी गलत रास्ते पर ले जाते हैं। कबीर जी इस आध्यात्मिक भटकाने वालों को बहुत बड़ा पापी मानते हैं इसी लिए वह कहते है कि ऐसे गुरूओ की माँ का सिर मूड देना चाहिए।यहाँ पर माँ का सिर मूंडने का भाव ऐसे गुरुओ के प्रति एक सांकेतिक विरोध करना मात्र ही है।

5 टिप्पणियाँ:

Anita ने कहा…

एक सच्चा सदगुरु ही हमें तार सकता है पर तभी जब हम भी सच्चे शिष्य बनें !

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर विचार हे जी धन्यवाद आप का

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

अमल से बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है

http://vedquran.blogspot.com/2011/01/same-principle.html

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

काबिलेतारीफ़ है प्रस्तुति ।
आपको दिल से बधाई ।

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

मकर संक्राति ,तिल संक्रांत ,ओणम,घुगुतिया , बिहू ,लोहड़ी ,पोंगल एवं पतंग पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं........

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