कबीर चतुराई अति घनी,हरि जपि हिरदै माहि॥
सूरी ऊपर खेलना, गिरै त ठाहर नाहि॥१०९॥
कबीर जी कहते हैं कि यदि दुनिया के भरमो-वहमों से बचना है तो सब से बढ़िया समझादारी यह है कि हम उस परमात्मा को अपने ह्र्दय मे बसा ले। लेकिन परमात्मा की याद सदा दिल मे बनाये रखना बहुत मुश्किल काम है, क्योकि संसार में अनेक तरह के प्रलोभन और विकार हैं जो हमे अक्सर अपनी ओर खीचते रहते हैं जिस कारण उस परमात्मा की याद बिसर जाती है।कबीर जी कहते हैं कि परमात्मा की याद सदा दिल मे बनाये रखना,ठीक ऐसा है जैसे सॊली के ऊपर चड़ना।लेकिन इस के सिवा दूसरा कोई रास्ता भी नही है जिस से संसारिक दुख -कलेशों से बचा जा सके।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि परमात्मा की याद सदा दिल मे बनाये रखना भले ही आसान नही है लेकिन यदि हमे दुखो-कलेशों और भरमो से मुक्ति पानी है तो उस परमात्मा की याद को सदा दिल मे जागाये रखना होगा।
कबीर सोई मुखु धंनि है,जा मुखि कहीऐ रामु॥
देही किस की बापुरी, पवित्रु होइगो ग्रामु॥११०॥
कबीर जी आगे कहते हैं कि इस तरह जो परमात्मा को अपने दिल मे सदा के लिये बसा लेते हैं और मुँह से उस का नाम लेते हैं वे धन्य हैं। क्योकि उस परमात्मा के नाम के प्रभाव के कारण यह मात्र शरीर ही नही बल्कि पूरा गाँव ही पवित्र ही जाता है।
क्बीर जी कहना चाहते हैं कि जब कोई उस परमात्मा के साथ एकाकार हो जाता है तो ऐसे भक्त के आस-पास का माहौल भी राममय होने लगता है।क्योकि हमारी भावनाओं को प्रभाव हमारे आस-पास रहने वालों पर भी पड़ता है। जिस कारण उन के मन मे भी पवित्रता का संचार होने लगता है।
सूरी ऊपर खेलना, गिरै त ठाहर नाहि॥१०९॥
कबीर जी कहते हैं कि यदि दुनिया के भरमो-वहमों से बचना है तो सब से बढ़िया समझादारी यह है कि हम उस परमात्मा को अपने ह्र्दय मे बसा ले। लेकिन परमात्मा की याद सदा दिल मे बनाये रखना बहुत मुश्किल काम है, क्योकि संसार में अनेक तरह के प्रलोभन और विकार हैं जो हमे अक्सर अपनी ओर खीचते रहते हैं जिस कारण उस परमात्मा की याद बिसर जाती है।कबीर जी कहते हैं कि परमात्मा की याद सदा दिल मे बनाये रखना,ठीक ऐसा है जैसे सॊली के ऊपर चड़ना।लेकिन इस के सिवा दूसरा कोई रास्ता भी नही है जिस से संसारिक दुख -कलेशों से बचा जा सके।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि परमात्मा की याद सदा दिल मे बनाये रखना भले ही आसान नही है लेकिन यदि हमे दुखो-कलेशों और भरमो से मुक्ति पानी है तो उस परमात्मा की याद को सदा दिल मे जागाये रखना होगा।
कबीर सोई मुखु धंनि है,जा मुखि कहीऐ रामु॥
देही किस की बापुरी, पवित्रु होइगो ग्रामु॥११०॥
कबीर जी आगे कहते हैं कि इस तरह जो परमात्मा को अपने दिल मे सदा के लिये बसा लेते हैं और मुँह से उस का नाम लेते हैं वे धन्य हैं। क्योकि उस परमात्मा के नाम के प्रभाव के कारण यह मात्र शरीर ही नही बल्कि पूरा गाँव ही पवित्र ही जाता है।
क्बीर जी कहना चाहते हैं कि जब कोई उस परमात्मा के साथ एकाकार हो जाता है तो ऐसे भक्त के आस-पास का माहौल भी राममय होने लगता है।क्योकि हमारी भावनाओं को प्रभाव हमारे आस-पास रहने वालों पर भी पड़ता है। जिस कारण उन के मन मे भी पवित्रता का संचार होने लगता है।
4 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छे।
परमात्मा को जिसने आपने जीवन का केन्द्र बना लिया हो वह जीते जी मुक्त हो जाता है !
आदरणीय बाली साहिब,
सबब से आपके ब्लॉग पर आना हुआ.कबीरजी के दो श्लोक व्याख्या सहित पढ़े .मन खुश हो गया.गुरबाणी का खज़ाना भी हाथ लग गया.धीरे धीरे समेटूंगा.जो चाहिये था मिल गया.गुरबाणी की व्याख्या बहुत सालों से ढूंढ रहा था.आपके आभार को शब्द नहीं हैं मेरे पास.
आप की कलम को ढेरों सलाम.
बाली जी!
संत कबीर के उपदेशों की व्याख्या पढ़
कर बड़ा सुख और सकून मिला।
प्रभावकारी लेखन के लिए बधाई।
कृपया बसंत पर एक दोहा पढ़िए......
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
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