कबीर मै जानिउ पड़िबो भलो, पड़िबे सिउ भल जोगु॥
भगति न छाडऊ राम की, भावै निंदऊ लोगु॥४५॥
कबीर जी पिछ्ले श्लोको मे भोग विलासादि और विषय विकारादि को छोड़ने कि बात कहने के बाद अब पढ़ने की बात पर अपना मत रख रहे हैं।वे कहते है कि मैने सुना था कि धर्म ग्रंथो को पढ़ना चाहिए। लेकिन पढ़ने से तो अच्छा है कि हम उस परमात्मा की भक्ति करें।वे कह्ते है मुझे उस परमत्मा की भक्ति,उस राम को छोड़ना मंजूर नही है भले ही लोग मेरी इस बात की निंदा करें कि मैं धर्म ग्रंथो को पढ़ता नही।
कबीर जी इस श्लोक मे हमे कहना चाहते हैं कि बहुत से लोग ऐसे होते हैं कि वे धर्म ग्रंथों का अध्ययन ही करते रहते हैं।धर्म ग्रंथो को अर्थ सहित कंठस्थ कर लेते है।वे लोग इसी को अपनी धार्मिकता समझ लेते हैं कि वे इन्हें पढ़ते है इस लिए वे प्रभु की भक्ति ही कर रहे हैं। लेकिन कबीर जी कहते है कि भले ही पढ़ना अच्छी बात है लेकिन यदि पढ़ने की बजाय हम उस परमात्मा की भक्ति करें, उस के प्रेम मे डूब जाए तो यह पढ़ते रहने से अच्छा होगा। कबीर जी अपनी बात करते हुए हमे समझाना चाहते है कि भले ही लोग तुम्हारी ऐसा करने पर निंदा करेगें । लेकिन हमे इस निंदा की परवाह किए बिना ही परमात्मा की भक्ति करने का रास्ता ही अपनाना चाहिए। अर्थात कबीर जी हमे कहना चाहते है कि हमे पढ़ने पढ़ाने मे, संसारिक ज्ञान हासिल करने में, धर्म ग्रंथो मे लिखी बातो को ही दोहराते रहने मे नही लगे रहना चाहिए।
कबीर लोगु की निंदै बपुड़ा, जिह मनि नाहि गिआनु॥
राम कबीरा रवि रहे, अवर तजे सभ काम॥४६॥
कबीर जी पिछले श्लोक मे कही बातों के संदर्भ का आश्य लेकर कह रहे हैं कि ऐसे लोग जो हमारे इस व्यवाहर के कारण हमारी निंदा करते है वे लोग नासमझ हैं। क्योकि वे संसारिक बोध और ईश्वरीय बोध की जानकारी नही रखते। ऐसे लोगो की निंदा कोई मायने नही रखती। इस लिए कबीर जी कह्ते हैं कि उस राम मे ही रमे रहो। बाकि के सभी कामों को छोड़ दो।उन की परवाह मत करो।
कबीर जी हमे कहना चाहते हैं कि नासमझ लोगों की निंदा करने से कोई फर्क नही पड़ता।क्योकि उन्हें इस बारे मे कोई जानकारी ही नही है कि क्या सही है और क्या गलत है।इस लिए उस परमात्मा मे ही रमे रहना चाहिए और व्यर्थ मे इन बातो की परवाह नही करनी चाहिए।
भगति न छाडऊ राम की, भावै निंदऊ लोगु॥४५॥
कबीर जी पिछ्ले श्लोको मे भोग विलासादि और विषय विकारादि को छोड़ने कि बात कहने के बाद अब पढ़ने की बात पर अपना मत रख रहे हैं।वे कहते है कि मैने सुना था कि धर्म ग्रंथो को पढ़ना चाहिए। लेकिन पढ़ने से तो अच्छा है कि हम उस परमात्मा की भक्ति करें।वे कह्ते है मुझे उस परमत्मा की भक्ति,उस राम को छोड़ना मंजूर नही है भले ही लोग मेरी इस बात की निंदा करें कि मैं धर्म ग्रंथो को पढ़ता नही।
कबीर जी इस श्लोक मे हमे कहना चाहते हैं कि बहुत से लोग ऐसे होते हैं कि वे धर्म ग्रंथों का अध्ययन ही करते रहते हैं।धर्म ग्रंथो को अर्थ सहित कंठस्थ कर लेते है।वे लोग इसी को अपनी धार्मिकता समझ लेते हैं कि वे इन्हें पढ़ते है इस लिए वे प्रभु की भक्ति ही कर रहे हैं। लेकिन कबीर जी कहते है कि भले ही पढ़ना अच्छी बात है लेकिन यदि पढ़ने की बजाय हम उस परमात्मा की भक्ति करें, उस के प्रेम मे डूब जाए तो यह पढ़ते रहने से अच्छा होगा। कबीर जी अपनी बात करते हुए हमे समझाना चाहते है कि भले ही लोग तुम्हारी ऐसा करने पर निंदा करेगें । लेकिन हमे इस निंदा की परवाह किए बिना ही परमात्मा की भक्ति करने का रास्ता ही अपनाना चाहिए। अर्थात कबीर जी हमे कहना चाहते है कि हमे पढ़ने पढ़ाने मे, संसारिक ज्ञान हासिल करने में, धर्म ग्रंथो मे लिखी बातो को ही दोहराते रहने मे नही लगे रहना चाहिए।
कबीर लोगु की निंदै बपुड़ा, जिह मनि नाहि गिआनु॥
राम कबीरा रवि रहे, अवर तजे सभ काम॥४६॥
कबीर जी पिछले श्लोक मे कही बातों के संदर्भ का आश्य लेकर कह रहे हैं कि ऐसे लोग जो हमारे इस व्यवाहर के कारण हमारी निंदा करते है वे लोग नासमझ हैं। क्योकि वे संसारिक बोध और ईश्वरीय बोध की जानकारी नही रखते। ऐसे लोगो की निंदा कोई मायने नही रखती। इस लिए कबीर जी कह्ते हैं कि उस राम मे ही रमे रहो। बाकि के सभी कामों को छोड़ दो।उन की परवाह मत करो।
कबीर जी हमे कहना चाहते हैं कि नासमझ लोगों की निंदा करने से कोई फर्क नही पड़ता।क्योकि उन्हें इस बारे मे कोई जानकारी ही नही है कि क्या सही है और क्या गलत है।इस लिए उस परमात्मा मे ही रमे रहना चाहिए और व्यर्थ मे इन बातो की परवाह नही करनी चाहिए।
3 टिप्पणियाँ:
Badhiyaa prastuti Bali sahaab
कबीर सत्य वचन कहा है.. जब जब हम प्रमात्मा की भक्ति में लीन हो जाते हैं, जो शब्द हमारे मन से निकलते हैं, वो किसी धार्मिक ग्रंथ में लिखे हुए शब्दों से कम नहीं होते, क्योंकि धार्मिक ग्रंथ भी ऐसे ही लिखें गए हैं।
achhi peshkash
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