रविवार, 9 मार्च 2008

गुरुबाणी विचार-११



मन माया में फधि रहि्यो बिसरियो गोबिंन्द नाम॥
कह नानक बिन हरि भजन जीवन कउनें काम॥३०॥

प्रानी राम न चेतइ मदि माया के अंध॥
कह नानक हरि भजन बिन परत ताहि जम फंद॥३१॥

सुख में बहू संगी भये दुख में संग न कोइ॥
कह नानक हरि भज मना अंति सहाई होइ॥३२॥

वास्तव में हम जितनी भी कोशिश इस माया से बचनें की करते है,उतना ही हम उस में उलझते जाते हैं।इसी कारण गुरु जी,कहते हैं कि जबत क हमइ स माया में फँसे रहते है हमें उस परमात्मा का नाम भूला रहता है।लेकिन वह आगे कहते हैं कि यदि हम उस प्रभू का ध्यान अपनें जीवन में नही कर पा रहे तो हमारा यह जीवन किस काम का है? अर्थात संसार के बाकी के सभी कार्य छोटे हैं...परमात्मा के ध्यान के बिना वह सब व्यर्थ हैं।
लेकिन हम तो उस माया के प्रभाव के कारण अंधे बनें रहते हैं ऐसे में हमें यह पता नही लग सकता कि क्या हमारे लिए सही है और क्या हमारे लिए गलत।क्यूँकि माया हमें भटकाती रहती है जिस कारण हम सही निर्णय नही पाते।गुरु जी कहते हैं कि इसी लिए हम यमों के अर्थात दुखों से घिर ते जाते हैं।क्योकि जैसे ही हमारा ध्यान उस प्रभूसे हटता है दुख हमें घेर लेते हैं।
इस लिए गुरु जी कहते हैं कि यह बात सही है कि जब तू सुखी होता है अर्थात धन आदि सुखों से परिपूर्ण होता है,सभी कुछ तेरे पास होता है उस समय सभी तुम्हारे आस पास तुम्हारे मित्र बन कर आ जाते हैं,लेकिन जब तुम दुखी होते हो तो कोई तुम्हारा दुख बाटनें के लिए तुम्हारे पास नही आता।इस लिए तुझे समझ जाना चाहिए कि इस सब संगीयों का साथ मात्र दिखावा है।तुम्हारा सच्चा साथ तो सिर्फ परमात्मा ही देता है।वही तेरी सहायता करता है।इस लिए सदा उस का ध्यान कर।



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