गुरुवार, 13 मार्च 2008

गुरुबाणी विचार-१४




जतन बहुत सुख के कीए दुख को कीए ना कोइ॥
कह नानक सुनि रे मना हरि भावै सो होइ॥३९॥

जगत भिखारी फिरत है सभ को दाता राम॥
कह नानक मन सिमर तिह पूरन होवहि काम॥४०॥

झूठे मान कहा करै जग सुपने जिओ जान॥
इन में कछु तेरो नहीं नानक कहिओ बखान॥४१॥


हम सभी हमेशा सुख पाना चाहते हैं,हमारी सभी चेष्टाएं सुख को पानें के लिए ही होती हैं।लेकिन कोई भी कभी दुख पानें की कोशिश नही करता।गुरु जी कहते हैं कि हमारे ऐसा चाहनें से कुछ भी नही हो सकता,परमात्मा तो वही करता है जो उसे अच्छा लगता है।वह सदा हमारा भला ही करता है।ऐसे में यदि हमें कोई दुख भी मिलता है तो वह भी उसी की मरजी से मिलता है और जो सुख मिलता है वह भी उसी की मरजी से मिलता हैं।इस लिए हमारी कोई भी चेष्टा उस प्रभू के कार्य या मर्जी में कभी बाधक नही बन सकती।सदा वही होता है जो वह परमात्मा चाहता है।
सारा संसार ही उस से मागँता रहता है, संसार में ऐसा कोई नही जो उस के सामनें भिखारी ना हो।क्यूँकि वह तो सकल ब्रह्मांड का स्वामी है।सभी कुछ तो उसी का है।वही सब को देनें वाला दाता है।इस लिए गुरू जी कहते है कि हमें अपने मन में सदा उस का ही ध्यान करना चाहिए।क्योंकि सभी कुछ तो उसी के हाथ में है,वही सभी कामों को कर रहा है।वही हमें हमारे कामों को पूरा करता है।
लेकिन हम सदा अंहकार करते रहते हैं कि जैसे इन सभी कार्यों को हम ही कर रहे हैं।जबकी यह सभी कुछ एक सपनें से ज्यादा कुछ भी नही है।(यहाँ यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि यह संसार उन्हें ही सपनें के समान लगता है जो उस परमात्मा से एकाकार हो चुके हैं,उन्ही को यह सच्चाई दिखती है) इस लिए गुरु जी कह रहे हैं कि यहाँ पर कुछ भी तेरा नही है,जिस के लिए तू इतना झूठा मान कर रहा है।




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