मंगलवार, 11 मार्च 2008

गुरुबाणी विचार-१२




जनम जनम भरमत फिरियो मिटियो ना जम की त्रास॥
कह नानक हरि भज मना निरभै पावहि बास॥३३॥

जतन बरत मैं करि रहियो मिटियो ना मन को मान॥
दुरमति सो नानक फधियो राख लेह भगवान॥३४॥

बाल जुआनी अरू बिरधि फुनि तीनि अवसथा जान॥
कह नानक हरि भजन बिन बिरथा सब ही मान॥३५॥


हम सभी कई जन्मों से भटकते रहे हैं,लेकिन हमें अपना ठौर कही नही मिला।हम सदा यमों अर्थात मृत्यू भय से कभी भी मुक्त नही हो पाएं।गुरु जी कहते हैं कि उस का कारण मात्र इतना है कि हम उस प्रभु से दूरी बनाए बैठे है,जिस कारण हमें दुख भोगनें पड़ रहे हैं।यदि हमें इन दुखों और मृत्यू के भय से मुक्त होना है तो उस प्रभू की बंदगी करनें से उस निर्भय का आसरा प्राप्त हो सकेगा। जो सभी कष्टों को नष्ट कर देता है।
लेकिन यदि हम अपनें यत्न करें कि किसी तरह उन दुखों से छूट्कार पाने के लिए हमे कोई रास्ता मिल जाए। ऐसा यत्न करनें पर भी हम कामयाब नही हो पाते। क्यूँ कि इस प्रकार यत्न करनें से हमारे अंदर अभिमान,अंहकार को ही मजबूती मिलती है।हमें यह भ्रम होनें लगता है कि हमारी मेहनत से किए हुए कार्य ही हमें इस सभी त्रासदी से मुक्त करा देगें।क्यूँकि इन सभी दुखो का कारण अंहकार ही होता है ,इस लिए गुरु जी हमे समझाने के लिए कहते हैं कि -हे भगवान ! मैं इतने यत्न कर चुका हूँ।लेकिन मेरे किए हुए यत्नों से मेरा अंहकार दूर नही हुआ,मेरे मन की बुरी भावनाएं,इस अंहकार से मुक्त नही होनें देती।इस लिए प्रभू तू ही हमारी सहायता कर,जिस से मेरे भीतर का अंहकार मिट जाए।
गुरु जी आगे कहते हैं कि हरेक इन तीन अवस्थाओं से गुजरता है,बालपन,जवानी और बुढापा।लेकिन यदि हमनें इन अवस्थाओ को भॊगते समय ही उस प्रभू का ध्यान नही किया तो जान ले कि तेरा जन्म व्यर्थ ही चला जाएगा।इस लिए हमें अपनें जीवन काल में ही उस परमात्मा को पानें के लिए उस का ध्यान करना चाहिए।




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